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द्वितीय प्राचार्यस्वामीजीके बाद द्वितीय आचार्य श्रद्धेय श्री श्री १००८ श्री श्री भारीमालजी स्वामी हुए। आपका जन्म मेवाड़के मूहो ग्राममें संम्वत् १८०३ में हुआ था। आपकी दीक्षा मारवाड़के केलवा प्राममें हुई थी। स्वामी भीखणजीने अपने जीवन काल में ही इन्हें युवराजपदवीसे विभूषित कर दिया था । इनके पिताका नाम कृष्णजी लोढ़ा और माताका नाम धारिणी था । इनके शासन काल में ३८ साधु और ४४ साध्वियोंकी प्रवर्जा हुई। आप बड़े ही प्रतापी आचार्य हुए। खुद स्वामी भीखणजीने अन्त समय में इनकी प्रशंसा की थी और सर्व साधुओंको उनकी आज्ञामें रहनेका आदेश किया था। उन्होंने कहा था कि ऋषि मारीमालजी सच्चे साधु हैं, आचार्य पदकी जिम्मेवारी उठाने लायक भारीमालजीसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं। मैं सर्व साधुत्रोंको आदेश करता हूँ कि वे भारीमालजीकी आज्ञामें वर्ते। इनकी दीक्षा १० दस वर्षकी अवस्थामें ही हो गयी थी। वे बाल ब्रह्मचारी थे। आपका देहान्त ७५ वर्षकी अवस्थामें मेवाड़के राजनगरमें मिती माघ वदो ८ संम्वत् १८७८ को हुआ था।
तृतीय आचार्य तृतीय प्राचार्य श्री श्री १००८ श्री श्री रायचन्दजी स्वामीका जन्म बड़ी राबलियाँ ग्राममें संम्वत १८४७ में हुआ था और राजनगरमें उनको पाटगद्दी मिली थी। उनके पिताका नाम चतुरजी बम्ब था। ये
ओसवाल जातिके थे। उनकी माताका नाम कुसलांजी था। ये भीखणजीके शासन कालहीमें नाबालक अवस्थामें तीब्र बैराग्यसे दीक्षित हो गये थे। स्वामी भीखणजीके देहावसानके समय इनकी उम्र छोटी ही थी। इन्होंने अपने शासनकाल में ७७ साधु और १६८ साध्वियोंको दीक्षित किया था। इनका देहान्त ६२ वर्षकी उमरमें माघ वदी १४
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