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श्री बीन शासन संस्था
जिन मन्दिर तथा जिन प्रतिमा की आशातना से बचें (प० पू० पं० गुरुदेव श्री अभय सागर जी म. सा. के चरणों में रहकर प्राप्त ज्ञान में से आराधक जीवों के लाभार्थ उपयोगी बातें) संग्राहक-पू० पं० श्री निरुपम सागर जी म. सा. संशोधक-पू० आ० श्री सूर्योदय सागर सूरिजी म. सा० ।
१. भगवान को अंगरचना करते समय नव अंग खुले रखने का ध्यान अवश्य रखें।
२. भगवान को अंगरचना में ल्पास्टिक, कचकड़ा, गोंद, पुठ्ठा आदि तुच्छ पदार्थों का उपयोग न करें।
३. प्रभु पूजा में पुरुष खेस (उतरासन, दुपट्टा) एवं बहनें रूमाल से आठ पड (पूड़) की घड़ी कर मुखकोश बांधे ।
४. प्रभु पुजा में बनियान, जांघिये सिले हुए वस्त्र आदि का उपयोग न करें।
५. प्रभु पूजा में बहनों को मस्तक अवश्य ढंकना चाहिये। सिर खूला न रखें।
६. पुरुषों द्वारा लूंगी एवं बहनों द्वारा झब्बा (फ्राक(कूर्ती स्कर्ट गाउन) पहनकर दर्शन पूजन करने जाना, यह महान् आशातना है।
७. प्रभु पूजा में पुरुषों द्वारा घोती, खेस, कंदोरा के अलावा अन्य किसी वस्त्र का उपयोग नहीं होता है ।
८. बहनों द्वारा पूजा करने में लंहगा (घाघरा चणीया) साड़ी (लुगड़ा धोती) चोली (पोलका ब्लाउज) रूमाल के अलावा अन्य किसी वस्त्र का उपयोग नहीं होता है ।
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