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श्री जैन शासन संस्था
" अहिगारी य गिहत्थो शुहस्याणो वित्तमंसुओं कुलजो । अस्कुद्दो थिईबलउ मइमं तह धम्मरागीय । गुरुपूजाकरणरई, सुस्सूसाई गुणसंगउ चेव । णायाहिगयत्रिहवो णस्सघणीयमाणापहाणो य ॥ ६॥ - पंचासक सूत्र
भावार्थ :- अनुकूल कुटुम्ब वाला धनवान् सत्कार करने योग्य, कुलवान, दानी, धैर्यरूप बलवाला, बुद्धिमान्, धर्म का रागी गुरुपूजा में तत्पर, शुश्रूषादि बुद्धि के आठ गुण वाला, चैत्य द्रव्य वगैरह की वृद्धि के उपाय का जानकार और शास्त्र की आज्ञा के अधीन, इतने गुणवान् गृहस्थ चैत्य कार्यो का अधिकारी है । जैन शासन संघ के कोई भी कार्यवाहक संघ के प्रति या वहीवटकर्त्ता को कम से कम द्रव्यसप्ततिका पूज्य उपाध्यायजी लावण्यविजयजी कृत १७४४ का अभ्यास करना आवश्यक है ।
पदाधिकारी :
(१) मुख्य कार्यवाहक (संचालक) (२) सहायक कार्यवाहक (संचालक) (३) कोषाध्यक्ष
नोट :- अन्य खातों के भिन्न- २ कार्यवाहक आवश्यकता हो तो श्री जैन संघ नियुक्त कर सकता है। श्री जैन संघ का वहीवट शुद्ध धार्मिक है, इसे जैन समाज नहीं किन्तु जैन संघ कहते हैं। मुख्य कार्यवाहक की आयु ३० से ७० वर्ष तक की हो तो अच्छा है ।
मौलिक "श्री जैन संघ" को ही श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, कहते हैं । भिन्न- २ सम्प्रदायों के प्रादुर्भाव के बाद में श्वेताम्बर, मूर्तिपूजक आदि विशेषण लगाये गए हैं ।
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