________________
श्री जैन शासन संस्था
२३]
जनेतर धार्मिक कार्य में ही खर्च कर सकते हैं। ऐसा द्रव्यसप्ततिका में स्पष्ट पाठ है । इस खाते का द्रव्य चेरिटी के उपयोग में या व्यवहारिक शिक्षण या कोई भी सांसारिक कार्य में खर्च नहीं हो सकता है।
(१०) आयंबिल तप :-यह खाता आयंबिल करनेवाले तपस्वी व्यक्ति के लिये है इसलिए इस खाते का द्रव्य आयंबिल की तपस्या का प्रचार, वृद्धि, रक्षा व सुविधा की व्यवस्था आदि में खर्च हो सकता है। द्रव्य की अधिकता होवे तो अन्य ग्रामों में हर किसी स्थल पर आयंबिल तप करने वालों की भक्ति में खर्च हो सकता है । संक्षेप में यह द्रव्य आयंबिल तप और तपस्वियों की भक्ति के सिवाय अन्य किसी कार्य में खर्च नहीं हो सकता है। यह खाता भी केवल धार्मिक है । आयंबिल भवन का उपयोग धामिक प्रवृति के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में नहीं किया जा सकता ।
(११) धारणा, पारणा, स्वामीवात्सल्य, नवकारसी खाता:-पोषधवालों, एकासण प्रभावना आदि-उपरोक्त खातों में समपित या बोला और भी ऐसे ही भिन्न २ खाते तप-जप और तीर्थ यात्रा द्रव्य आदि धार्मिक कार्य करने वाले सार्मिकों को भक्ति करने निमित्त समर्पित द्रव्य द्रव्यदाता की भावनानुसार उन्हीं खातों में लगाना चाहिये । आधिक्य होवे तो सातों क्षेत्रों में जहां आवश्यकता हो वहां खर्च हो सकता है । किन्तु सार्वजनिक किसी भी कार्य में खर्च नहीं हो सकता है। यह सब द्रव्य केवल धार्मिक क्षेत्रों का द्रव्य है ।
(१२) निश्राकृत :-दानियों द्वारा विशिष्ठ खास प्रकार के धार्मिक कार्य में दिया हुआ द्रव्य उसी कार्य में खर्च करना चाहिये। आधिक्य होवे तो ऊपर के खातों में अन्य स्थल में खर्च हो सकता है।
(१३) कालकृत :-किसी खास समय पर जैसे पोष
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com