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श्री जैन शासन संस्था
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सकल संघ को बुला सकते हैं। परंपरा को कार्य पद्धति के अनुसार प्रत्येक काम कर सकते है।
९. श्री संघ में लघुमति या बहुमति या एक मत या सर्वानुमत को स्थान नहीं है। परंतु आज्ञा को प्राधान्य है। उसके अनुकूल अभिप्राय कोई दे सकता है और उन सब पर विचार कर संधपति यथा योग्य रीति से खुद को योग्य लगे उस मुताबिक उसका आचरण अपने उत्तरदायित्व पर कर सकता है या करा सकता है। विचार भेद हो तो दूसरे जैन संघ के अनुभवी अग्रगण्य परिणत तथा जानकार श्रावक श्राविका आदि की सलाह सूचना से दूर किया जा सकता है तथा गुरुमहाराज या आखिर में मुख्य आचार्य महाराज से निर्णय लिया जा सकता है। उनकी आज्ञा अंत में सबके लिये मान्य रहती है।
१०. स्थानीय संघ को स्थानीय या आसपास के जैन संघ या जैन संप्रदायान्तर, जैनेतर जैसे कि इतर धमों, इतर समाजों (राज्य राजादि) के साथ जिनाज्ञा की प्रधानता पूर्वक हितकारी सम्बन्ध स्थापित करना, जो श्री जैन शासन और श्री संघ के लिए हितकारी या विहित हो एवं बाधक न हो।
११. सर्व प्रकार की धर्माराधना परंपरागत रोति से चालू रखना अनिवार्य है। संवभेद न होने देना, श्री जैन शासन में नया सापेक्ष भेद चल सकता है। निरपेक्ष कोई भी विचारभेद, आचार भेद, मतभेद नहीं चल सकता है। किसी गांव या शहर में अलग २ गच्छ हों तो उन गच्छों के निश्चित स्थान का संचालन स्वपरम्परा की आचरण और मान्यता के अनुसार कर सकते हैं।
१२. संघ की कार्यवाही का स्थानः-श्री संघ की जाजम पर सब कार्य किया जा सकता है । जाजम श्री जिन मंदिर के चौक में उसकी छत्रछाया में अनुकूल स्थान में बिछाई जा सकती है।
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