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श्री जैन शासन संस्था
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१०. शासन रक्षक देव और देवी:
ऋषभदेव प्रभु के शासनाधिष्ठायक गोमुखयक्ष और अधिष्ठायिका चक्रेश्वरी देवी, महावीर प्रभु के शासनाधिष्ठायक मातंगयक्ष और अधिष्ठायिका सिद्धायिका देवी ।
२२ तीर्थंकरों के शासन के अधिष्ठायक देव देवियों के नाम भी आवश्यक निर्युक्ति आदि शास्त्रों में मिलते हैं ।
शासन के अधिष्ठायक देव देवियों को शास्त्रों में प्रवचन देव प्रवचन देवी के नाम से कहा है । इस भांति श्रुत आगमों को अधिष्ठायिका देवी को श्रुत देवी कहा है ।
प्रवचन शब्द का अर्थ श्रुत आगम भी होता है । चतुविध संघ भी होता है। शासन का अर्थ संस्था भी है और धर्म भी होता है । कहां क्या अर्थ करना है ? यह गुरुगम से अगले पिछले सम्बन्धादि का विचार कर समझा जाता है ।
११. श्री जैन शासन की अवांतर ( अन्तर्गत ) सस्थाएँ:श्री जैन शासन की अवांतर संस्थाएँ विविध गच्छ हैं ।
१२. श्री संघ की अवांतर शाखाएँ:
प्रत्येक गांव के स्थानिक श्री संघ, सकल श्री संघ की अवांतर शाखाएँ हैं ।
१३. शासन की संपत्तिः
जब से जैन शासन अस्तित्व में आया तब से या उससे पूर्व या भविष्य में भी इसके लिए जो कोई स्थावर जंगम सम्पत्ति जैन शासन के उद्देश्य के मुताबिक स्थापित होती हैं या हुई हों अर्थात् पांच आचारों के मुताबिक असंख्य अनुष्ठान, प्रत्येक अनुष्ठान के
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