________________
६२'
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
जल, डारत आग बुझाय ॥ १०३ ॥ विद्या याद किये विना, विसर जात है मान । बिगड़ जात विन खबर तें, चोली को सो पान ॥ १०४ ॥ अन्तर अंगुली चार को, सांच झूठ में होय ॥ सब मानै देखी कही, सुनी न मान कोय ॥ १०५ ॥ जोर न पहुँचै निबल पर, जो पै सबल सहाय ॥ भोडल की फानूस हू, दीप न बात बुझाय ॥ १०६ ॥ होय भले के सुत बुरो, भलो बुरे के होय ॥ दीपक से काजल प्रकट, कमल कीच से होय ॥ १०७ ॥ जो धनवन्त सो देत कछु, देय कहा धनहीन ॥ कहा निचौर नग्न जन, स्नान सरोवर कीन ॥ १०८ ॥ जाकी जेती पहुंच सो, उतनी करत प्रकाश ॥ रविज्यों कैसे करि सके, दीपक तम को नाश ॥ १०९॥ उत्तम को अपमान अरु, जहां नीच को मौन ॥ कहा भयो जो हंस की, निन्दा काग बखान ॥ ११० ॥ यथायोग की ठौर विन, नर 'छवि पावत नांहि ॥ जैसे रतन कथीर में, काच कनक के मांहि ॥ १११ ॥ विपत बड़े ही सहत हैं, इतर विपत से दूर ॥ तारे न्यारे रहत हैं, गहै राहु शशि सूर ॥ ११२ ॥ विद्या गुरु की भक्ति सों, क्या कीन्हे अभ्यास ॥ भील द्रोण के विन कहे, सीख्यो वाण विलास ॥ ११३ ॥ उद्यम बुधि बलसों मिलै, तब पावत शुभसाज ॥ अन्धे खंधे चढ़ि पङ्गु ज्यों, सबै सुधारत काज ॥ ११४ ॥ फल विचारि कारज करहु, करहु न व्यर्थ अमेल ॥ तिल ज्यों बालू पेरिये, नाहिन निकसै तेल ॥ ११५ ॥ दुष्ट निकट वसीये नहीं, बगि न कीजिये बात ॥ केदली बेर प्रसंग से, बिंधहि कण्टकन पांत ॥ ११६ ॥ पुन्य विवेक' प्रभाव से, निश्चल लक्ष्मि निवास ॥ जबलौं तेल अंदीप में, तबलौं ज्योति प्रकास ॥ ११७ ॥ अरि छोटो गिनिये नहीं, जासों होत बिगार ॥ तृन समूह को छिनके में, जारत तनिक अंगार ॥ ११८ ॥ ताको अरि कह करि सके, जाके यतन उपाय ॥ जरै न ताँती रेत में, जाके पैनही पाय ॥ ११९ ॥ पण्डित जन को श्रम मरम, जानत जे मैतिधीर ॥ बांझ न कबहूँ जानही, तन प्रसूत की पीर ॥१२० ॥ बीर पराक्रम सों करै, भूमण्डल को राज ॥ जोरावर यातें करे, वन अपनो मृगराज ॥ १२१ ॥ नृप प्रताप से देश में, दुष्ट न प्रकटै कोय ॥ प्रगटै तेज दिनेश को, तहां तिमिर नहिं होय ॥ १२२ ॥ यह सांची सब ही कहै, राजा करै सो न्याव ॥ ज्यों चौपड़ के खेलमें, पासा पड़े सो दाव ॥ १२३ ॥ कारज ताही को सरै, करै जो समय निहार ॥ कबहुँ न हारै खेल जो, खेलै दाव विचार ॥ १२४ ॥ सब देखें गुण
१-भूल जाती है ॥ २-फर्क ॥ ३-हवा ॥ ४-बेटा॥ ५-पैदा होता है ॥ ६ गरीब ।। ७-नंगा ॥ ८-तालाब ॥ ९-जितनी ॥ १०-सूर्यके समान ॥ ११- अँधेरा॥ १२-अनादर ।। १३-आदर ।। १४-बुराई ॥ १५-उचित ॥ १६-स्थान ॥ १७-शोभा ॥ १८-सोना ॥ १९-दर ॥ २०-चंद्रमा ॥ २१-सूर्य ॥ २२-अंधा ॥ २३-कन्धा ॥ २४ लंगड़ा, पांगला ॥ २५-समान ॥ २६-नहीं॥ २७-केला ॥ २८-सोहबत ॥ २९-कांटों से ॥ ३०-पत्ते ।। ३१-ज्ञान ॥ ३२-प्रताप ॥ ३३-दीपक ॥ ३४-तिनकों का ढेर ॥ ३५-थोड़ी देर में ॥ ३६-जरा सी॥ ३७-अग्नि ॥ ३८-गर्म ॥ ३९-जूता ॥ ४०-मेहनत ॥ ४१-धीर मतिवाले।। ४२-बच्चा जनना ॥ ४३-पीड़ा। ४४-बहादुरी।। ४५-पृथ्वी का घेरा ॥ ४६सिंह ॥ ४७-सूर्य ॥ ४८-अँधेरा ॥ ४९-सिद्ध होता हैं ।। ५०-देखकर ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com