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द्वितीय अध्याय ।
सींचहु नीर ॥ ८२ ॥ जो पहिले कीजै यतन, सो पाछे फलदाय ॥ आग लगे खोदे कुआ, कैसे आग बुझाय ॥ ८३ ॥ क्यों कीजै ऐसो यतन, जासों काज न होय ॥ परबत पै खोदै कुआ, कैसे निकस तोय ॥ ८४ ॥ सेव्यो छोटो ही भलो, जासे गरेज सराय ॥ कीजै कहा समुद्र को, जासे प्यास न जाय ॥ ८५ ॥ उद्यम से सब मिलत है, विन उद्यम न मिलहि ॥ सीधी अंगुली घी जम्यो, कबहूँ निकरात नाहि ॥ ८६ ॥ कहिये बात प्रमाण की, जासों सुधरै काज ॥ फीको थोड़े लवेण से, अधिकहि खारो नाज ॥ ८७ ॥ कहै रसीली वात सो, बिगड़ी लेत सुधार ॥ सरस लवण की दाल में, ज्यों नींबूरस डार ॥ ८८॥ सुधरी बिगड़े वेग से, बिगड़ी फिर सुधरै न ॥ दूध फटे कांजी पड़े, सो फिर दूध बनै न ॥ ८९ ॥ बिगती हू सुधरै वचन, जैसे वणिक विशेष ॥ हींग मिरी जीरो कहै, हग मर जर लिख लेप ॥ ९० ॥ बहुत किये हूँ नीच को, नीच सुभाव न जात ॥ छोड़ि ताल जल हुम्भ में, कौवा चोंच भरात ॥ ९१ ॥ चतुर करे इक सैम गिनै, जाके नॉहि विवेवः ॥ जैसे अबुधगमार के, पांच कांच है एक ॥ ९२ ॥ कर न होवै चतुर नर, कूर कहै जो कोय ॥ मानै कांच गमार तो, पांच कांच नहिं होय ॥ १३ ॥ वेष बनाग सूर को, कॉयर सूर न होय ॥ खाल उड़ाये सिंह की, स्याल सिंह नहिँ होय ॥ ९ ॥ बड़े न "लो लाजकुल, लो नीच अधीर ॥ उदधि रहै मरजाद में, बहैं मड़ि नदि नीर ॥ ९५ ॥ जैसी संगति बैठिये, इजत मिलि है आय ॥ सिर पर मखमल सेहरो, पनहीं मखमल पांय ॥ ९६ ॥ चतुर सभा में मूर्ख नर, शोभा पावत नांहि ॥ जैसे बैंक शोभत नहीं, हंस मंडेली मांहि ॥ ९७ ॥ बुरी कर गोई बुरो, बुरो नांहि कोइ और ॥ वणिज करै सो बानियां, चोरी कर सो चोर ॥ ९८ ॥ झंठ बस जा पुरुष के, ताही की अप्रतीत ॥ चोर जुवारी से भलो, याते करत प्रतीत ॥ ९९ ॥ विना सिखाये हुलहै, जाकी जैसी रीत ॥ जनमत सिंह ने को तनय, गज पर चढ़त अभीत ॥१००॥ सत्य वचन मुख जो कहै, नाकी चाह सरह ॥ ग्राहक आवै दूर से, सुनि इक शयही सौह ॥ १०१॥ बुद्धि विना विद्य कहो, कहा सिखावै कोय ॥ प्रथम गाम ही नांहि तो, सीव कहां से होय ॥ १०२ ॥ कह रेस में कह रोप में, अरि सों जनि पतियाय ॥ जैसे शीतल तप्त
१. पानी ।। २-मतलब ।। ३-पूरी हो ॥ ४-निकलता है ॥ ५-निमक, नोन ।। ६-मीठी ॥ ७-अधेक ॥ ८-शीघ्र ॥ ९-बनियां ॥ १०-मिर्च ॥ ११-घड़ा। १२-मृर्व ।। १३- समान ॥ १४-शान ।। १५-मूर्ख ॥ १६-बहादुर ।। १७-टरपोक ।। १८-नष्ट करते हैं ।। १९- फल की लज्जा ॥ २०-समुद्र ॥ २१-उमड कर ।। २२-वगुला ।। २३-समूह ॥ २४- यापार ॥ २५-अविश्वास ॥ २६-विश्वास ॥ २७-लेता है ।। २८-पुत्र ॥ २९-निडर होकः ॥ ३०-तारीफ ॥ ३१-लेनेवाला ॥ ३२-एक बात कहनेवाला ॥ ३३-साहूकार ।। ३४-प्रीति ॥ ३५-गुस्सा ॥ ३६-चैरी ॥ ३७ मत ॥ ३८-विश्वास करो ॥ ३९-उंढा ।। ४०-गर्म ॥
६ जै० सं०
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