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पञ्चम अध्याय ।
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पाठकवृन्द ! तुम को रात्रि में जितने बजे पर उठने की आवश्यकता हो उस के लिये ऐसा करो कि-सोने के समय प्रथम दो चार मिनट तक चित्त को स्थिर करो, फिर बिछौने पर लेट कर तीन वा सात वार ईश्वर का नाम लो अर्थात् नमस्कारमत्र को पढ़ो, फिर अपना नाम ले कर मुख से यह कहो कि-हम को इतने बजे पर (जितने बजे पर तुम्हारी उठने की इच्छा हो) उठा देना, ऐसा कह कर सो जाओ, यदि तुम को उक्त कार्य के बाद दश पाँच मिनट तक निन्द्रा न आवे तो पुनः नमस्कारमत्र को निद्रा आने तक मन में ही (होठों को न हिला कर) पढ़ते रहो, ऐसा करने से तुम रात्रि में अभीष्ट समय पर जाग कर उठ सकते हो, इस में सन्देह नहीं है। योगसम्बन्धिनी मेस्मेरिजम विद्या का संक्षिप्त वर्णन ।
वर्तमान समय में इस विद्या की चर्चा भी चारों ओर अधिक फैल रही है अर्थात् अंग्रेजी शिक्षा पाये हुए मनुष्य इस विद्या पर तन मन से मोहित हो रहे हैं, इस का यहाँ तक प्रचार बढ़ रहा है कि-पाठशालाओं (स्कूलों) के सब विद्यार्थी भी इस का नाम जानते हैं तथा इस पर यहाँ तक श्रद्धा बढ़ रही है किहमारे जैन्टिलमैन भाई भी (जो कि सब बातों को व्यर्थ बतलाया करते हैं) इस विद्या का सच्चे भाव से स्वीकार कर रहे हैं, इस का कारण केवल यही है किइस पर श्रद्धा रखनेवाले जनों को बालकपन से ही इस प्रकार की शिक्षा मिली है और इस में सन्देह भी नहीं है कि-यह विद्या बहुत सच्ची और अत्यन्त लाभदायक है, परन्तु बात केवल इतनी है कि-यदि इस विद्या में सिद्धता को प्राप्त कर उसे यथोचित रीति से काम में लाया जावे तो वह बहुत लाभदायक हो सकती है।
इस विद्या का विशेष वर्णन हम यहां पर ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं कर सकते हैं किन्तु केवल इस का स्वरूपमात्र पाठक जनों के ज्ञान के लिये लिखते हैं।
निःसन्देह यह विद्या बहुत प्राचीन है तथा योगाभ्यास की एक शाखा है, पूर्व समय में भारतवर्षीय सम्पूर्ण आचार्य और मुनि महात्मा जन योगाभ्यासी हुआ करते थे जिस का वृत्तान्त प्राचीन ग्रन्थों से तथा इतिहासों से विदित हो सकता है। __ आवश्यक सूचना-संसार में यह एक साधारण नियम देखा जाता है किजब कभी कोई पुरुष किन्हीं नूतन (नये) विचारों को सर्व साधारण के समक्ष
१-निद्रा के आने तक पुनः मन में मत्र पढ़ने का तात्पर्य यह है कि-ईश्वरनमस्कार के पीछे मन को अनेक बातों में नहीं ले जाना चाहिये अर्थात् अन्य किसी बात का स्मरण नहीं करना चाहिये ॥ २-हाथकान के लिये आरसी की क्या आवश्यकता है अर्थात् इस बात की जो परीक्षा करना चाहे वह कर सकता है ॥ ३-यह विद्या भी स्वरोदय विद्या से विषयसाम्य से सम्बन्ध रखती है, अतः यहाँ पर थोड़ा सा इस का भी स्वरूप दिखलाया जाता है ।। ४-इतने ही आवश्यक विषयों के वर्णन से ग्रन्थ अब तक बढ़ चका है तथा आगे भी कुछ आवश्यक विषय का वर्णन करना अवशिष्ट है, अतः इस ( मेस्मेरिजम ) विद्या के स्वरूपमात्र का वर्णन किया है ।
६१ जै० सं०
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