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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
__ अर्थात् हिन्दुस्थान की गाँवों की पञ्चायतें विना राजा के छोटे २ राज्य हैं, जिन में लोगों की रक्षा के लिये प्रायः सभी वस्तुयें हैं, जहाँ अन्य सभी विषय विगड़ते दिखाई देते हैं तहाँ ये पञ्चायतें चिरस्थायी दिखाई पड़ती हैं, एक राजवंश के पीछे दूसरे राजवंश का नाश हो रहा है, राज्य में एक गड़बड़ी के पीछे दूसरी गड़बड़ी खड़ी होरही है, कभी हिन्दू, कभी पठान, कभी मुगल, कभी मरहठा, कभी सिख, कभी अंग्रेज, एक के पीछे दूसरे राज्य के अधिकारी बन रहे हैं किंत ग्रामों की पञ्चायतें सदैव बनी हुई हैं. ये ग्रामों की पञ्चायतें जिन में से हर एक अलग २ छोटी २ रियासत सी मुझे जंच रही हैं सब से बढ़ कर हिन्दुस्थानवासियों की रक्षा करनेवाली हैं, ये ही ग्रामों की पञ्चायतें सभी गड़बड़ियों से राज्येश्वरों के सभी अदल बदलों से देश के तहस नहस होते रहने पर भी प्रजा को सब दुःस्वों से बचा रही हैं, इन्हीं गाँवों की पञ्चायतों के स्थिर रहने से प्रजा के सुख स्वच्छन्दता में बाधा नहीं पड़ रही है तथा वह स्वाधीनता का सुख भोगने को समर्थ हो रही है।
अंग्रेज़ ऐतिहासिक एलूफिनस्टन साहब और सर चार्ल्स मेट्काफ महाशय ने जिन गाँवों की पञ्चायतों को हिन्दुस्थानवासियों की सब विपदों से रक्षा का कारण जाना था, जिन को उन्हों ने हिन्दुस्थान की प्रजा के सुख और स्वच्छन्दता का एक मात्र कारण निश्चय किया था वे अब कहाँ हैं ? सन् १८३० ईस्वी में भी जो गाँवों की पञ्चायतें हिन्दुस्थानवासियों की लौकिक और पारलौकिक स्थिति में कुछ भी आँच आने नहीं देती थीं वे अब क्या हो गई ? एक उन्हीं पञ्चायतों का नाश हो जाने से ही आज दिन भारतवासियों का सर्वनाश हो रहा है, घोर राष्ट्रविप्लवों के समय में भी जिन पञ्चायतों ने भारतवासियों के सर्वस्व की रक्षा की थी उन के विना इन दिनों अंग्रेजी राज्य में भारत की राष्ट्रसम्बन्धी सभी अशान्तियों के मिट जाने पर भी हमारी दशा दिन प्रतिदिन बदलती हुई, मरती हुई जाति की घोर शोचनीय दशा बन रही है, शोचने से भी शरीर रोमाञ्चित होता है कि-सन् १८५७ ईस्वी के गदर के पश्चात् जब से स्वर्गीया महाराणी विक्टोरिया ने भारतवर्ष को अपनी रियासत की शान्तिमयी छत्रछाया में मिला लिया तब से प्रथम २५ वर्षों में ५० लाख भारतवासी अन्न विना तड़फते हुए मृत्युलोक में पहुँच गये तथा दूसरे २५ वर्षों में २ करोड़ साठ लाख भारतवासी भख के हाहाकार से संसार भर को गँजा कर अपने जीवित भाइयों को समझा गये कि गाँवों की उन छोटी २ पञ्चायतों के विसर्जन से भारत की दुर्गति कैसी भयानक हुई है, अन्य दुर्गतियों की आलोचना करने से हृदयवालों की वाक्यशक्ति तक हर जाती है ।
गाँवों की वे पञ्चायतें कैसे मिट गई, सो कह कर आज शक्तिमान् पुरुषों का अप्रियभाजन होना नहीं है, वे पञ्चायतें क्या थीं सो भी आज पूरा २ लिखने का सुभीता नहीं है, गरतवासियों को सब विपदों से रक्षा करनेवाली वे पञ्चायतें मानो एक एक बड़ी गृहस्थी थीं, एक गृहस्थी के सब समर्थ लोग जिस प्रकार अपने अधीनस्थ परिवारों के पालन पोषण तथा विपदों से तारने के लिये उद्यम और प्रयत्न करते रहते हैं वैसे ही एक पञ्चायत के सब समर्थ लोग अपनी अधीनस्थ सब गृहस्थियों की सब प्रकार रक्षा का उद्यम और प्रयत्न करते थे, आज कल के अमेरिका माँस आदि विना राजा के राज्य जिस प्रकार प्रजा की इच्छा के अनुसार कुछ लोगों को अपने में से चुन कर उन्हीं के द्वारा अपने शासन पालन विचार आदि का प्रबन्ध करा लेते हैं उसी प्रकार वे पञ्चायतें ग्रामवासियों के प्रतिनिधियों की शासनपालन विचार आदि की व्यवस्थासभायें थीं, राजा चाहे जो कोई क्यों न होता था उसी पञ्चायत से उस को सम्पूर्ण ग्रामवासियों से मालगुजारी आदि मिल नाती थी, राज्येश्वर राजा से ग्रामवासियों का और कोई सम्बन्ध नहीं रहता था, पञ्चायत
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