________________
पञ्चम अध्याय ।
६७३
भेजा, निमन्त्रण को पाकर यथासमय पर बहुत दूर २ नगरों के प्रतिनिधि आ गये और सभाकर्ता पोरवाल ने उन का भोजनादि से अत्यन्त सम्मान किया तथा सर्व मतानुसार उक्त सभा में यह ठहराव पास किया गया कि-जो कोई खानदानी धनाढ्य वैश्य इस सभा का उत्सव करेगा उस को इस सभा के सभासदों (मेम्बरों) में प्रविष्ट (भरती) किया जावेगा।
१-पाठकगणों को उक्त लेख को पढ़ कर विस्मित (आश्चर्य से युक्त) नहीं होना चाहिये और न यह विचार करना चाहिये कि-पूर्व समय में सभायें कब होती थीं, सभाओं की प्रथा (रिबाज) तो थोड़े समय पूर्व से प्रचलित हुई है, इत्यादि, क्योंकि सभाओं का प्रचार आधुनिक (थोड़े समय पूर्व का) नहीं किन्तु प्राचीन ही है, हां यह बात सत्य है कि कुछ काल तक सभाओं की प्रथा बन्द रह चुकी है तथा थोड़े समय से इस का पुनः प्रचार हुआ है, इसी लिये प्राचीन काल में इस प्रथा के प्रचलित होने में कुछ पाठकों को विस्मय (आश्चर्य) उत्पन्न हो सकता है, परन्तु वास्तव में यह बात सत्य नहीं है, क्योंकि-सभाओं की प्रथा प्राचीन ही है, अर्थात् प्राचीन काल में सभाओं की प्रथा का खूब प्रचार रह चुका है, उक्त विषय का पाठकों को ठीक रीति से निश्चय हो जावे इस लिये हम ता० २ नोवेंबर सन् १९०६ के वेंकटेश्वर समाचार पत्र में छपे हुए ( इसी आशय के) लेख को यहां पर अविकल (ज्यों का त्यों) प्रकाशित करते हैं, उस के पढ़ने से पाठकों को अच्छे प्रकार से विदित ( मालूम) हो जावेगा कि प्राचीन काल में किस प्रकार का प्रबन्ध था तथा सभाओं के द्वारा किस प्रकार से व्यवस्था होती थी, देखिये:---
"गांवों में पञ्चायत-सन् १८१९ ई० में एलफिनस्टन साहब ने हिन्दुस्थानवासियों के विषय में लिखा थाः
Their Village Communities are almost sufficient to protect their members if all other Governments are withdrawn.
अर्थात् हिन्दुस्थानवासियों की गाँवों की पञ्चायतें इतनी दृढ़ हैं कि किसी प्रकार की गवर्नमेंट न रहने पर भी वे अपने अधीनस्थ लोगों की रक्षा करने में समर्थ हैं। सन् १८३० ई० में सर चार्ल्स मेटकाफ महाशय ने लिखा थाः
The village Communities are little republics having nearly everything they want within themselves. They seem to last where nothing else lasts. Dynasty after dynasty tumbles down, revolution succeeds to revolution Hindu, Pathan, Moghul, Maharatta, Sikh, English are masters in turn but the village Communities remain the same. The union of the village communities each one forming a little separate State in itself has I conceive contributed more than any other oause to the preservation of the people of India through all revolutions and changes which they have suffered and it is in a high degree conducive to their happiness and to the enjoyment of great portion of freedom and independence,
५७ जै० सं०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com