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जैनसम्प्रदायशिक्षा। से युक्त विचरते हुए इस (खंडेला) नगर के उद्यान में आकर ठहरे, उक्त नगर की अमलदारी में ८४ गाँव लगते थे, दैववश कुछ दिनों से सम्पूर्ण राजधानी में महामारी और विषूचिका रोग अत्यन्त फैल रहा था कि-जिस से हज़ारों आदमी मर चुके थे और मर रहे थे, रोग के प्रकोप को देख कर वहाँ का राजा बहुत ही भयातुर हो गया और अपने गुरु ब्राह्मणों तथा ऋषियों को बुलाकर सब से उक्त उपद्रव की शान्ति का उपाय पूछा, राजा के पूछने पर उक्त धर्मगुरुओं ने कहा कि-“हे राजन् ! नरमेध यज्ञ को करो, उस के करने से शान्ति होगी" उन के वचन को सुन कर राजा ने शीघ्र ही नरमेध यज्ञ की तैयारी करवाई और यज्ञ में होमने के लिये एक मनुष्य के लाने की आज्ञा दी, संयोगवश राजा के नौकर मनुष्य को ढूँढ़ते हुए श्मशान में पहुँचे, उस समय वहाँ एक दिगम्बर मुनि ध्यान लगाये हुए खड़े थे, बस उन को देखते ही राजा के नौकर उन्हें पकड़ कर यज्ञशाला में ले गये, यज्ञ की विधि करानेवालों ने उस मुनि को स्नान करा के वस्त्राभूषण पहिरा कर राजा के हाथ से तिलक करा कर हाथ में सङ्कल्प दे कर तथा वेद का मन्त्र पढ़ कर हवनकुण्ड में स्वाहा कर दिया, परन्तु ऐसा करने पर भी उपद्रव शान्त न हुआ किन्तु उस दिन से उलटा असंख्यातगुणा क्लेश और उपद्रव होने लगा तथा उक्त रोगों के सिवाय अग्निदाह, अनावृष्टि और प्रचण्ड हवा (आँधी) आदि अनेक कष्टों से प्रजा को अत्यन्त पीड़ा होने लगी और प्रजाजन अत्यन्त व्याकुल होकर राजा के पास जा २ कर अपना २ कष्ट सुनाने लगे, राजा भी उस समय चिन्ता के मारे विह्वल हो कर मूर्छागत (बेहोश) हो गया, मूर्छा के होते ही राजा को स्वप्न आया और स्वम में उस ने पूर्वोक्त (दिगम्बर मत के) मुनि को देखा, जब मूर्छा दूर हुई और राजा के नेत्र खुल गये तब राजा पुनः उपद्रवों की शान्ति का विचार करने लगा और थोड़ी देर के पीछे अपने अमीर उमरावों को साथ लेकर वह नगर के बाहर निकला, बाहर जाकर उस ने उद्यान में ५०० दिगम्बर मुनिराजों को ध्यानारूढ देखा, उन्हें देखते ही राजा के हृदय में विस्मय उत्पन्न हुआ और वह शीघ्र ही उन के चरणों में गिरा और रुदन करता हुआ बोला कि-"हे महाराज ! आप कृपा कर मेरे देश में शान्ति करो" राजा के इस विनीत (विनययुक्त) वचन को सुन कर जिनसेनाचार्य बोले कि-"हे राजन् ! तू दयाधर्म की वृद्धि कर" राजा बोला कि "हे महाराज ! मेरे देश में यह उपद्व क्यों हो रहा है" तब दिगम्बराचार्य ने कहा कि-"हे राजन् ! तू और तेरी प्रजा मिथ्यात्व से अन्धे हो कर जीवहिंसा करने लगे हैं तथा मांससेवन और मदिरापान कर अनेक पापाचरण किये गये हैं, उन्हीं के कारण तेरे देश भर में महामारी फैली थी और उस के विशेष बढ़ने का हेतु यह है कि-तू ने शान्ति के बहाने से नरमेध यज्ञ में मुनि का होम कर सर्व प्रजा को कष्ट में डाल दिया, बस इसी कारण ये सब दूसरे भी अनेक उपद्रव फैल रहे हैं, तुझे यह भी स्मरण रहे कि-वर्तमान में जो जीवहिंसा से अनेक उपद्रव हो रहे हैं यह तो एक सामान्य बात है, इस की विशेषता
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