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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
ओसवालों के १४४४ गोत्र कहे जाने का कारण ।
लगभग १६०० संवत् में इस बात को जानने के लिये कि ओसवालों के गोत्रों की कितनी संख्या है एक सेवक ( भोजक ) ने परिश्रम करना शुरू किया तथा बहुत अर्से में उसने १४४३ ( एक हजार चार सौ तेतालीस ) गोत्रों को लिख कर संग्रहीत किया, उस समय उस ने अपनी समझ के अनुसार यह भी विचार लिया कि अब कोई भी गोत्र बाकी नहीं रहा है, ऐसा विचार कर बह अपने घर लौट भाया और देशाटन का सब हाल अपनी स्त्री से कह सुनाया, तब उस की स्त्री ने कहा कि - "तुम ने मेरे पीहरवाले ओसवालों की खांप लिखी है" यह सुन कर सेवक ने चौंक कर अपनी स्त्री से पूछा कि - " उन लोगों की क्या खांप है" स्त्री ने कहा कि "डोसी" है, यह सुन कर सेवक ने कहा कि - " फिर भी कोई होसी" इस प्रकार कह कर उक्त खाँप को भी लिख लिया, बस तब ही से ओसवालों के १४४४ गोत्र कहे जाते हैं ।
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सूचना - हमारी समझ में ऊपर लिखा हुआ लेख केवल दन्तकथारूप प्रतीत होता है, अतः इस विषय में हम तो पाठकगणों से यही कह सकते हैं। कि- ओसवालों १४४४ गोत्र कहने की केवल एक प्रथामात्र चल पड़ी है, क्योंकि वे सब मूल गोत्रे नहीं हैं किन्तु एक एक मूल गोत्र में से पीछे से शाखायें तथा प्रतिशाखायें निकली हैं, वे सब ही मिला कर १४४४ संख्या समझनी चाहिये, उन्हीं को शाखा, खाँप, नख और ओलखाण इत्यादि नामों से भी कह सकते हैं, अतः जिन शाखाओं के प्रचरित होने का हाल मिला है उन को हम आगे " शाखा गोत्र" इस नाम से लिखेंगे, क्योंकि खांपें तो व्यापार आदि अनेक कारणों से होती गई हैं अर्थात् राज का काम करने से, किसी नगर से उठ कर अन्यत्र जा कर वसने से, व्यापार धन्धा करने से और लौकिक प्रथा आदि अनेक कारणों से बहुत सी खांपें हुई हैं, उन के कुछ उदाहरण भी यहाँ
१ - इस ग्रन्थ की तीसरी आवृत्ति में इस बात का अच्छे प्रकार से खुलासा कर दिया जावेगा कि कौन २ से मूल गोत्रों की कौन २ सी शाखायें तथा प्रतिशाखायें हैं, इस लिये सब ओसवाल पाठकगणों को उचित है कि अपनी जाती के इस अच्छे कार्य में अवश्य सहायता प्रदान करें, सहायता हम केवल इतनी ही चाहते हैं कि वे अपने २ मूल गोत्र और उस की शाखा आदि का जो कुछ हाल उन्हें याद हो उस सब को लिख कर हमारे विवेकलब्धि शीलसौभाग्य पुस्तकादि कार्यालय (बीकानेर) में भेज देवें तथा जो २ बात जब २ इस विषय की विदित हो तब २ उसे भी कृपा कर भेजते रहें, उक्त विषय का लेख भेजते समय उन को उस की प्रामाणिकता और अप्रामाणिकता आदि का कुछ भी खयाल नहीं करना चाहिये अर्थात् दन्तकथा, प्राचीन लेख तथा भाटों के पास की वंशावलि का लेख इत्यादि जो कुछ मिले उसे मेज देना चाहिये, परन्तु हाँ साथ में उस का नाम अवश्य लिख देना चाहिये, हमारी इस प्रार्थना पर ध्यान दे कर यदि सुज्ञ ओसवाल महोदय इस विषय में सहायता करेंगे तो थोड़े ही समय में ओसवालों के सम्पूर्ण गोत्रों का इतिहास पूर्ण रीति से तैयार हो जावेगा ॥
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