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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
अपनी शक्ति के अनुसार दे सकेगा, इस लिये सब में भाव ही मूल (कारण) समझना चाहिये, निदान मुहते नगराज ने स्वप्न के वाक्य के अनुसार स्तम्भ कराया और विक्रम संवत् १५८३ में यात्रा की, उन की यात्रा के समाचार को सुन कर गुरुदेव का दर्शन करने के लिये बहुत दूर २ के यात्री जन आने लगे और उन की वह यात्रा सानन्द पूरी हुई। कुछ काल के पश्चात् इन्हों ने अपने नाम से नगासर नामक ग्राम वसाया।
राव श्री कल्याणमल जी महाराज ने मन्त्री नगराज के पुत्र संग्रामसिंह को अपना राज्यमन्त्री नियत किया, संग्रामसिंह ने खरतरगच्छाचार्य श्री जिनमाणिक्य सूरि महाराज को साथ में लेकर शेत्रुञ्जय आदि तीर्थों की यात्रा लिये संघ निकाला तथा शेत्रुञ्जय, गिरनार और भाबू आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए तथा मार्ग में प्रतिगृह में साधर्मी भाइयों को एक रुपया, एक थाल और एक लड्डु, इन का लावण बाँटते हुए चित्तौड़गढ में आये, वहाँ राना श्री उदयसिंह जी ने इन का बहुत मान सम्मान किया, वहाँ से रवाना हो कर जगह २ सम्मान पाते हुए ये आनन्द के साथ बीकानेर में आ गये, इन के सब व्यवहार से राव श्री कल्याणमल जी महाराज इनपर बड़े प्रसन्न हुए।
इन (मुहता संग्रामसिंह जी) के कर्मचन्द्र नामक एक बड़ा बुद्धिमान् पुत्र हुवा, जिस को बीकानेर महाराज श्री रायसिंह जी ने अपना मन्त्री नियत किया।
राज्यमन्त्री बच्छावत कर्मचन्द मुहते ने किया के उद्धारी अर्थात् त्यागी वैरागी खरतरगच्छाचार्य श्री जिनचन्द्र सूरि जी महाराज के आगमन की बधाई को सुनानेवाले याचकों को बहुत सा द्रव्यप्रदान किया और बड़े ठाठ से महाराज को बीकानेर में लाये, उन के रहने के लिये अपने घोड़ों की घुड़ेशाल जो कि नवीन बनवा कर तैयार करवाई थी प्रदान की अर्थात् उस में महाराज को ठहराया और विनति कर संवत् १६२५ का चतुर्मास करवाया, उन से विधिपूर्वक भगवतीसूत्र को सुना, चतुर्मास के बाद आचार्य महाराज गुजरात की तरफ विहार कर गये।
कुछ दिनों के बाद कारणवश बीकानेरमहाराज की तरफ से मन्त्री कर्मचन्द का अकबर बादशाह के पास लाहौर नगर में जाना हुआ, वहीं का प्रसंग है कि-एक दिन जब आनन्द में बैठे हुए अनेक लोगों का वार्तालाप हो रहा था उस समय अकबर बादशाह ने राज्यमन्त्री कर्मचन्द से पूछा कि-"इस बख्त अवलिया काजी जैन में कौन है"? इस के उत्तर में कर्मचन्द ने कहा कि-जैनाचार्य श्री जिनचन्द्र
१-नव हाथी दीने नरेस मद सों मतवाले ॥ नवे गाम बगसीस लोक आवै नित हाले ॥१॥ ऐराकी सो पांच सुतो जग सगलो जाणे ।। सवा कोड़ को दान मल्ल कवि सच्च बखाणे ॥२॥ कोई राव नराणा करि सके संग्रामनन्दन तें किया। श्री युगप्रधान के नाम मुंज करमचंद इतना दिया ॥३॥ २-यह स्थान उस दिन से बड़े उपासरे के नाम से विख्यात है जो कि अब भी बीकानेर में रांगड़ी के चौक में मौजूद है और बड़ा माननीय स्थान है, इस में प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का एक जैन पुस्तकालय भी है जो कि देखने के योग्य है ।।
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