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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
पिता की आज्ञा लेकर वे जोधपुर से रवाना हुए, शाम को मण्डोर में पहुँचे और वहाँ गोरे भैरव जी का दर्शन कर प्रार्थना की कि - "महाराज ! अब आप का दर्शन आप के हुक्म से होगा" इस प्रकार प्रार्थना कर रात भर मण्डोर में रहे और ज्यों ही गज़रदम उठे त्यों ही भैरव जी की मूर्ति बहली में मिली, उस मूर्ति को देखते ही साथवाले बोले कि - "लोगो रे ! जीतो, हम आप के साथ चलेंगे और आप का राज्य बढ़ेगा”, बीका जी भैरव जी की उस मूर्ति को लेकर शीघ्र ही वहाँ से रवाना हुए और काँउनी ग्राम के भोमियों को वश में कर वहाँ अपनी आन दुहाई फेर दी तथा वहीं एक उत्तम जगह को देख कर तालाब के ऊपर गोरे जी की मूर्ति को स्थापित कर आप भी स्थित हो गये, यहीं पर राव बीका जी महाराज का राज्याभिषेक हुआ, इस के पीछे अर्थात् संवत् १५४१ ( एक हजार पाँच सौ इकतालीस ) में राव बीका जी ने राती घाटी पर किला बना कर एक नगर बसा दिया और उस का नाम बीकानेर रक्खा, राव बीकाजी महाराज का यश सुन कर उक्त नगर में ओसवाल और महेश्वरी वैश्य आदि बड़े २ धनाढ्य साहूकार आ २ कर वसने लगे, इस प्रकार उक्त नगर में राव बीका जी महाराज के पुण्यप्रभाव से दिनोंदिन आवादी बढ़ती गई ।
मन्त्री बच्छराज ने भी बीकानेर के पास बच्छासर नामक एक ग्राम वसाया, कुछ काल के पश्चात् मन्त्री बच्छराज जी को शत्रुञ्जय की यात्रा करने का मनोरथ उत्पन्न हुआ, भतः उन्हों ने संघ निकाल कर शेत्रुञ्जय और गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा की, मार्ग में साधर्मी भाइयों को प्रतिगृह में एक मोहर, एक थाल और एक लड्डू का लावण बाँटां तथा संघपति की पदवी प्राप्त की और फिर आनन्द के साथ बीकानेर में वापिस आ गये ।
बच्छेराज मन्त्री के-करमसी, वरसिंह, रत्ती और नरसिंह नामक चार पुत्र हुए और बच्छराज के छोटे भाई देवराज के दैसू, तेजा और भूण नामक तीन पुत्र हुए।
राव श्री लूणकरण जी महाराज ने बच्छावत करम सी को अपना मन्त्री बनाया, मसी ने अपने नाम से करमसीसर नामक ग्राम वसाया, फिर बहुत से स्थानों का संघ बुला कर तथा बहुत सा द्रव्य खर्च कर खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनहंस सूरि महाराज का पाट महोत्सव किया, एवं विक्रमसंवत् १५७० में बीकानेर नगर में नेमिनाथ स्वामी का एक बड़ा मन्दिर बनवाया जो कि धर्मस्तम्भरूप अभी तक मौजूद है, इस के सिवाय इन्हों ने तीर्थयात्रा के लिये संघ निकाला तथा शत्रुञ्जय गिरनार और आबू आदि तीर्थो की यात्रा की तथा मार्ग में एक मोहर, एक थाल और एक लड्डू का प्रतिगृह में साधर्मी भाइयों को लावण बाँटा और आनंद के साथ बीकानेर आ गये ।
१- परन्तु मुंशी देवीप्रसादजी ने संवत् १५४२ लिखा है | २ - राज्यमन्त्री बच्छराज की औलाद वाले लोग बच्छावत कहलाये ॥ ३-दसू जी की औलादवाळे लोग दसवाणी कहलाये ॥
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