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जैनसम्प्रदायशिक्षा। अठारहवीं संख्या-बोथरा (बोहित्थरा), फोफ
लिया बच्छावतादि ९ खाँ। श्री जालोर महादुर्गाधिप देवड़ावंशीय महाराजा श्री सामन्त सी जी थे तथा उन के दो रानियाँ थीं, जिन के सगर, वीरमदे और कान्हड़नामक तीन पुत्र और उमा नामक एक पुत्री थी, सामन्त सी जी के पाट पर स्थित होकर उन का दूसरा पुत्र वीरमदे जालोराधिप हुआ तथा सगर नामक बड़ा पुत्र देलवाड़े में आकर वहाँ का स्वामी हुआ, इस का कारण यह था कि सगर की माता देलवाड़े के झाला जात राना भीमसिंह की पुत्री थी और वह किसी कारण से अपने पुत्र सगर को लेकर अपने पीहर में जाकर (पिता के यहाँ) रही थी अतः सगर अपने नाना के घर में ही बड़ा हुआ था, जब सगर युवावस्था को प्राप्त हुआ उस समय सगर का नाना भीमसिंह (जो कि अपुत्र था) मृत्यु को प्राप्त हो गया तथा मरने के समय वह सगर को अपने पाट पर स्थापित कर देने का प्रबंध कर गया, बस इसी लिये सगर १४० ग्रामों के सहित देवलवाड़े का राजा हुआ और उसी दिन से वह राना कहलाने लगा, उस का श्रेष्ठ तपस्तेज चारों ओर फैल गया, उस समय चित्तौड़ के राना रतन सी पर मालवपति मुहम्मद बादशाह की फौज चड़ आई तब राना रतन सी ने सगर को शूरवीर जान कर उस से अपनी सहायता करने के लिये कहला भेजा, उन की खबर को पाते ही सगर चतुरङ्गिणी (हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त) सेना को सजवा कर राना रतनसी की सहायता में पहुँच गया और मुहम्मद बादशाह से युद्ध किया, बादशाह उस के आगे न ठहर सका अर्थात् हार कर भाग गया, तब मालव देश को सगर ने अपने कब्जे में कर लिया तथा आन और दुहाई को फेर कर मालवे का मालिक हो गया, कुछ समय के बाद गुजरात के मालिक बहिलीम जात अहमद बादशाह ने राना सगर से यह कहला भेजा कि-"तू मुझ को सलामी दे और हमारी नौकरी को मार कर नहीं तो मालव देश को मैं तुझ से छीन लूंगा" सगर ने इस बात को स्वीकार नहीं किया, इस का परिणाम यह हुआ कि-सगर और बादशाह में परस्पर घोर युद्ध हुआ, आखिरकार बादशाह हार कर भाग गया और सगर ने सब गुजरात को अपने आधीन कर लिया अर्थात् राना सगर मालव और गुजरात देश का मालिक हो गया, कुछ समय के बाद पुनः किसी कारण से गोरी बादशाह और राना रतन सी में परस्पर में विरोध उत्पन्न हो गया और बादशाह चित्तौड़ पर चढ़ आया, उस समय राना जी ने शूरवीर सगर को बुलाया और सगर ने आकर उन दोनों का आपस में मेल करा दिया तथा बादशाह से दण्ड
१-दोहा-गिरि अठार आबू धणी, गढ़ जालोर दुरंग ।। तिहाँ सामन्त सी देवडो, अमली मांण अभंग ॥१॥ २-यह पिङ्गल राजा को व्याही गई थी।
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