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पञ्चम अध्याय ।
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( जमा ) हो गये और परस्पर अनेक प्रकार की बातें करने लगे, थोड़ी देर के बाद उन में से एक मनुष्य ने जिस की कमर में दर्द हो गया था इस व्यन्तर से कहा कि-"यदि तू देवता है तो मेरी कमर के दर्द को दूर कर दे" तब उस नागरूप व्यन्तर ने उस मनुष्य से कहा कि - "इस लक्ष्मणपाल के घर की दीवाल (भीत ) का तू स्पर्श कर, तेरी पीड़ा चली जावेगी" निदान उस रोगी ने लक्ष्मणपाल के मकान की दीवाल का स्पर्श किहा और दीवाल का स्पर्श करते ही उस की पीड़ा चली गई, इस प्रत्यक्ष चमत्कार को देख कर लक्ष्मणपाल ने विचारा कि यह नागरूप में कब तक रहेगा अर्थात् यह तो वास्तव में व्यन्तर है, अभी अदृश्य हो जावेगा, इस लिये इस वह वचन ले लेना चाहिये कि जिस से लोगों का उपकार हो, यह विचार कर लक्ष्मणपाल ने उस नागरूप व्यन्तर से कहा कि - "हे नागदेव ! हमारी सन्तति ( औलाद ) को कुछ वर देओ कि जिस से तुम्हारी कीर्त्ति इस संसार में बनी रहे" लक्ष्मणपाल की बात को सुन कर नागदेव ने उन से कहा कि - " वर दिया" "वह वर यही है कि तुम्हारी सन्तति ( औलाद ) का तथा तुम्हारे मकान की दीवाल का जो स्पर्श करेगा उस की कमर में चिणक से उत्पन्न हुई पीड़ा दूर हो जावेगी और तुम्हारे गोत्र में सर्प का उपद्रव नहीं होगा" बस तब ही से 'वरदियो, नामक गोत्र विख्यात हुआ, उस समय उस की बहिन को अपने भाई के मारने के कारण अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ और उस ने शोकवश अपने प्राणों का त्याग कर दिया और वह मरकर व्यन्तरी हुई तथा उस ने प्रत्यक्ष होकर अपना नाम भूवाल प्रकट किया तथा अपने गोत्रवालों से अपनी पूजा कराने की स्वीकृति ले ली, तब से यह वरदियों की कुलदेवी कहलाने लगी, इस गोत्र में यह बात अब तक भी सुनने में आती है कि नागव्यन्तर ने वर दिया । तीसरी संख्या - कुकुड चोपडा. गणधर चोपडा गोत्र ।
कुष्ठ
खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री जिन अभयदेवसूरि जी महाराज के शिष्य तथा वाचनाचार्यपद में स्थित श्री जिनवल्लभसूरि जी महाराज विक्रम संवत् ११५२ ( एक हजार एक सौ बावन ) में विचरते हुए वण्डोर नामक स्थान में पधारे, उस समय मण्डोर का राजा नानुदे पड़िहार था, जिस का पुत्र धवलचन्द गलित से महादुःखी हो रहा था, उक्त सूरि जी महाराज का आगमन सुन कर राजा ने उन से प्रार्थना की कि - " हे परम गुरो ! हमारे कुमार के इस कुष्ठ रोग को अच्छा करो" राजा की इस प्रार्थना को सुन कर उक्त आचार्य महाराज ने कुकड़ी गाय का घी राजा से मँगवाया और उस को मन्त्रित कर राजकुमार के शरीर पर चुपड़ाया । तीन दिन तक शरीर पर घी के चुपड़े जाने से राजकुमार का शरी कंचन के समान विशुद्ध हो गया, तब गुरु जी महाराज के इस प्रभाव को देखकर
१ - " वर दिया " गोत्र का अपभ्रंश "बर दिया" हो गया है ॥
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