________________
जैनसम्प्रदायशिक्षा। स्थान में आये, उस समय फलवर्षी पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर के चारों ओर कांटों की वाड़ का पड़कोटा था, उक्त विद्वद्वर्य उपाध्याय जी महाराज ने धर्मोपदेश के समय यह कहा कि-"वृद्धिचन्द्र ! लक्ष्मी लगा कर उस का लाभ लेने का यह स्थान है" इस वचन को सुन कर सेठ वृद्धिचन्द्रजी ने फलवर्षी पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवा दिया और उस के चारों तरफ पक्का संगीन पड़कोटा भी बनवा दिया जो कि अब भी मौजूद है।
१-इस तीर्थ पर वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष आसौज वदि नवमी और दशमी को हुआ करता है, उस समय साधारणतया (आम तौर पर ) समस्त देशों के और विशेषतया (खास तौर पर) राजपूताना और मारवाड़ के यात्री जन अनुमान दश पन्द्रह सहस्र इकटे होते हैं, हम ने सब से प्रथम संवत् १९५८ के वैशाख मास में मुर्शिदाबाद (अजीमगञ्ज) से बीकानेर को जाते समय इस स्थान की यात्रा की थी, दर्शन के समय गुरुदत्ताम्नाय से अनुमान पन्द्रह मिनट तक हम ने ध्यान किया था, उस समय इस तीर्थ का जो चमत्कार हम ने देखा तथा उस से हम को जो आनन्द प्राप्त हुआ उस का हम वर्णन नहीं कर सकते हैं, उस के पश्चात् चित्त में यह
भिलाषा बराबर बनी रही कि किसी समय वार्षिकोत्सव पर अवश्य चलना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से एक पन्थ दो काज होंगे परन्तु कार्यवश वह अभिलाषा बहुत समय के पश्चात् पूर्ण हुई अर्थात् संवत् १९६३ में वार्षिकोत्सव पर हमारा वहां गमन हुआ, वहाँ जाकर यद्यपि हमें अनेक प्रकार के आनन्द प्राप्त हुए परन्तु उन में से कुछ आनन्दों का तो वर्णन किये विना लेखनी नहीं मानती है अतः वर्णन करना ही पड़ता है, प्रथम तो वहाँ जोधपुरनिवासी श्री कानमल जी पटवा के मुख से नवपदपूजा का गाना सुन कर हमें अतीव आनन्द प्राप्त हुआ, दूसरे उसी कार्य में पूजा के समय जोधपुरनिवासी विद्वद्वर्य उपाध्याय श्री जुहारमल जी गणी वीच २ में अनेक जगहों पर पूजा का अर्थ कर रहे थे (जो कि गुरुगमशैली से अर्थ की धारणा करने की वांछा रखनेवाले तथा भव्य जीवों के सुनने योग्य था) उसे भी सुन कर हमें अकथनीय आनन्द प्राप्त हुआ, तीसरे-रात्रि के समय देवदर्शन करके श्रीमान् श्री फूलचन्द जी गोलच्छा के साथ "श्री फलोधी तीर्थोन्नति सभा” के उत्सव में गये, उस समय जो आनन्द हम को प्राप्त हुआ वह अद्यापि (अब भी) नहीं भूला जाता है, उस समय सभा में जयपुरनिवासी श्री जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी श्री गुलाबचन्द जी ढढा एम. ए. विद्योन्नति के विषय में अपना भाषणामृत वर्षा कर लोगों के हृदयांबुजों (हृदयकमलों) को विकसित कर रहे थे, हम ने पहिले पहिल उक्त महाशय का भाषण यहीं सुना था, दशमी के दिन प्रातःकाल हमारी उक्त महोदय ( श्रीमान श्री गुलाबचन्द जी ढवा) से मुलाकात हुई और उन के साथ अनेक विषयों में बहुत देर तक वार्तालाप होता रहा, उन की गम्भीरता और सौजन्य को देख कर हमें अत्यन्त आनन्द प्राप्त हुआ, अन्त में उक्त महाशय ने हम से कहा कि-"आज रात्रि को जीर्णपुस्तकोद्धार आदि विषयों में भाषण होंगे, अतः आप भी किसी विषय में अवश्य भाषण करें" अस्तु हम ने भी उक्त महोदय के अनुरोध से जीर्णपुस्तकोद्धार विषय में भाषण करना स्वीकार कर लिया, निदान रात्रि में करीब नौ बजे पर उक्त विषय में हम ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेज के समीप खड़े हो कर उक्त सभा में वर्तमान प्रचलित रीति आदि का उद्बोध कर भाषण किया, दूसरे दिन जब उक्त महोदय से हमारी बातचीत हुई उस समय उन्हों ने हम से कहा कि-"यदि आप कान्फ्रेंस की तरफ से राजपूताने में उपदेश करें तो उम्मेद है कि बहुत सी बातों का सुधार हो अर्थात् राजपूताने के लोग भी कुछ सचेत होकर कर्तव्य में तत्पर हों" इस के उत्तर में हम ने कहा कि-"ऐसे उत्तम कार्यों के करने में तो हम स्वयं तत्पर रहते हैं अर्थात् यथाशक्य कुछ न कुछ उपदेश करते ही हैं, क्योंकि हम लोगों का
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com