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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
रोगी के यथार्थ वर्णन से' तथा इस रोग के चिह्नों के समुदाय (समूह) का ठीक मिलान करने से यद्यपि इस रोग का ठीक २ निश्चय हो सकता है परन्तु तथापि कभी २ यह अवश्य ( जरूर ) सन्देह (शक) होता है कि रोग हिष्टीरिया के सदृश ( समान) है अथवा वास्तविक है अर्थात् कभी २ रोग की परीक्षा ( जाँच ) का करना अति कठिन (बहुत मुश्किल) हो जाता है, परन्तु जो बुद्धिमान् ( अक्लमन्द अर्थात् चतुर) और अनुभवी ( तजुर्वेकार ) वैद्य हैं वे इस रोग की बैंचतान को वायुजन्य आदि रोग के द्वारा ठीक २ पहिचान लेते हैं ।
कारण-इस रोग का वास्तविक ( असली) कारण कोई भी नहीं मिलता है, क्योंकि इस (रोग) के कारण विविधरूप ( अनेक प्रकार के) और अनेक हैं।
स्त्रीजाति में यह रोग विशेष (प्रायः) देखा जाता है तथा पुरुष जाति में क्वचित् ही दीख पड़ता है।
इस के सिवाय-पन्द्रह बीस वर्ष की अवस्थावाली, विधवा तथा बन्ध्या (बांझ) स्त्रियों के वर्ग में यह रोग विशेष देखने में आता है।
स्पर्शविकार, गतिविकार, मनोविकार, गर्भाशय तथा दिमाग की व्याधि, मन की चिन्ता, खेद, भय, शोक, विवाहसम्बन्धी सन्ताप (दुःख), अजीर्ण (कव्जी), हथरस ( हाथ के द्वारा वीर्य का निकालना), मन का अधिक श्रम (परिश्रम ), अति विषयसेवन तथा मन को किसी प्रकार का धक्का पहुँचना, इत्यादि अनेक कारणों से यह रोग हो जाता है।
चिकित्सा-इस रोग की बैंचतान के लिये किसी विशेष (खास) प्रयत्न ( कोशिश) करने की आवश्यकता (जरूरत ) नहीं है, क्योंकि वह (बैंचतान) इस रोग का ऊपरी चिह्न है।
इस रोग की निवृत्ति का सब से अच्छा उपाय यही है कि जिस औषध आदि से शरीर को किसी प्रकार की हानि न पहुंचे तथा मन को स्वस्थता ( आराम वा तहदिली) प्राप्त हो सके उसी को उपयोग (व्यवहार) में लाना चाहिये।
इस के सिवाय-रोगी के शरीर की विशेष (खास तौर से) सम्भाल रखनी चाहिये, ठंढे पानी के छींटे मुखपर लगाना चाहिये, अमोनिया सुंघाना चाहिये तथा बिजुली लगानी चाहिये, यदि रोगी की दाँती बंध जावे तो नाक और मुख
१-यथार्थ वर्णन से अर्थात् सत्य २ हाल के कह देने से॥ २-वास्तविक अर्थात् असली ।। ३-क्योंकि इस रोग की उत्पत्ति रजोविकार से प्रायः होती है, अर्थात् रज में विकार होने से वा मासिकधर्म (रजोदर्शन ) में रज की तथा समय की न्यूनाधिकता होने से यह रोग उत्पन्न होता है ॥ ४-स्पर्शविकार और गतिविकार की अपेक्षा मनोविकार प्रधान कारण है । ५-वास्तव में तो दिमाग की व्याधि, मन की चिन्ता, खेद, भय, शोक और विवाहसम्बन्धी सन्ताप का समावेश मनोविकार में ही हो सकता है परन्तु स्पष्टता के हेतु इन कारणों को पृथक कह दिया गया है ।
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