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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
वह गर्भ पूर्ण अवस्था को प्राप्त नहीं होता है किन्तु चार वा पांच महीने में उस का पात (पतन) हो जाता है, इस लिये यह बहुत ही आवश्यक ( जरूरीकी) बात है कि जिस स्त्री अथवा जिस पुरुष के यह रोग हो उस को चाहिये कि प्रथम अच्छे प्रकार से इस रोग की चिकित्सा करा ले, पीछे संयोग करे, क्योंकि ऐसा करने से संयोगद्वारा स्थित हुए गर्भ में हानि नहीं पहुंचती है।
(प्रश्न ) जिस पुरुष के उपदंश रोग हो चुका है वह पुरुष यदि विवाह करने की सम्मति मांगे तो उसे विवाह करने की सम्मति देनी चाहिये अथवा नहीं देनी चाहिये ? (उत्तर) इस विषय में सम्मति देने से पूर्व कई एक बातें विचारणीय (विचार करनेयोग्य) हैं, क्योंकि देखो ! प्रथम तो उपदंश की व्याधि एक वार होने के पीछे शरीर में से समूल नष्ट होती है अथवा नहीं होती है इस विषय में यद्यपि पूरा सन्देह रहता है तथापि योग्य चिकित्सा करने के बाद उपदंश रोग के शान्त होने के पीछे एक दो वर्षतक उस की प्रतीक्षा करनी चाहिये, यदि उक्त समयतक यह व्याधि न दीख पड़े तो विवाह करने में कोई भी हानि प्रतीत नहीं होती है, दूसरे-अन्य विषों के समान उपदंश का भी विष समय पाकर अर्थात् बहुत दिन व्यतीत हो जाने से जीर्ण और बलहीन (कमजोर) होजाता है, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि जिन को पहिले यह रोग हो चुका था पीछे योग्य उपायों के द्वारा शान्त हो जाने पर तथा फिर बहुत समय तक दिखलाई न देने पर जिन स्त्री पुरुषों ने विवाह किया उन जोड़ों की सन्तति बहुधा तन्दुरुस्त दीख पड़ती है, यही विषय जूनागढ़ के एल. एम्. त्रिभुवनदास जैन डाक्टरने भी लिखा है।
गर्मी से जो २ रोग होते हैं वे प्रायः त्वचा (चमड़ी), मुख, हाड़, साँधे, आँख, नख और केश में दिखलाई देते हैं, उन का वर्णन संक्षेप से किया जाता है:
५-त्वचा के ऊपर बहुधा लाल ताँबे के रंग के समान चकत्ते देखने में आते हैं, ये (चकत्ते ) गोल होते हैं तथा छोटे चकसे तो दुअन्नी से भी छोटे और बड़े चकत्ते रुपये से भी कुछ विशेष बड़े होते हैं, ये प्रायः शरीर की सम्पूर्ण त्वचा पर होते हैं अर्थात् पेट, छाती, पैर और हाथ इत्यादि सब अवयवों पर दीख पड़ते हैं, परन्तु कभी २ ये चकत्ते केवल दोनों हथेलियों में और पैरों के तलवों में ही मालूम होते हैं, कभी २ ऐसा भी होता है कि-इन चकत्तों के साथ में त्वचा के छाले अथवा खोल भी निकल जाते हैं, यह उपदंश का एक खास चिह्न है, कभी २ गर्मी के फफोले भी हो जाते हैं उन को पूयपिटिका तथा रजःपिटिका कहते हैं, मनुष्य की निर्बल दशा में तो ये भी पक कर बड़ी २ चांदी के रूप में हो जाते हैं अथवा सूख जाने के बाद उन्हीं पर बड़े २ खरोंट जम जाते हैं, इस प्रकार के काले खरोंट कभी २ पैरों के ऊपर देखने में आते हैं।
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