________________
चतुर्थ अध्याय ।
कमी २ यह आधाशीशी का रोग अजीर्ण से भी हो जाता है, तथा वारंवार गर्भ के रहने से, बहुत दिनों तक बच्चे को दूध पिलाने से तथा ऋतुधर्म में अधिक खून के जाने से कमज़ोर (नाताकत) स्त्रियों के भी यह रोग हो जाता है।
लक्षण-इस रोग में रोगी को अनेक कष्ट रहते हैं अर्थात् रोगी प्रातःकाल से ही शिर का दर्द लिये हुए उठता है, उस से कुछ भी खाया नहीं जाता है, शिर धड़कता है, बोलना चालना अच्छा नहीं लगता है, चेहरा फीका रहता है, आंख के किनारे संकुचित होते हैं, प्रकाश का सहन नहीं होता है, पुस्तक आदि देखा नहीं जाता है तथा शिर गर्म रहता है।
चिकित्सा-१-यह रोग शीतल उपचारों से प्रायः शान्त हो जाता है, इस लिये यथाशक्य ( जहां तक हो सके) शीतल उपचार ही करने चाहियें।
२-पहिले कह चुके हैं कि-यह रोग मलेरिया की विषैली हवा से उत्पन्न होता है, इस लिये इस रोग में किनाइन का सेवन लाभदायक (फायदेमन्द) है, विनाइन की पांच ग्रेन की मात्रा तीन २ घंटे के बाद देनी चाहिये तथा यदि दस्त की कब्ज़ी हो तो जुलाब देना चाहिये।
३-होजरी, लीवर तथा आँतों में कुछ विकार हो तो दस्त को साफ लानेवाली तथा पुष्टिकारक दवा देनी चाहिये ।
४-वर्तमान समय में बाल्यविवाह (छोटी अवस्था में शादी) के कारण स्त्रियों को प्रायः प्रदर रोग हो जाता हैं तथा उस से उन का शरीर निर्बल (नाताकत) हो जाता है और उसी निर्बलता के कारण प्रायः उन के यह आधाशीशी का रोग भी हो जाता है, इस लिये स्त्रियों के इस रोग की चिकित्सा करने से पूर्व यथाशक्य उन की निर्बलता को मिटाना चाहिये, क्योंकि निर्बलता के मिटने से यह रोग स्वयं ही शान्त हो जावेगा।
५-पहिले कह चुके हैं कि-यह रोग शीतल उपचारों से शान्त होता है, इस लिये इस का शीतल ही इलाज करना चाहिये, क्योंकि शीतल इलाज इस रोग में शीघ्र ही फायदा करता है।
६-लवेंडर अथवा कोलन वाटर में दो भाग पानी मिला कर तथा उस में कपड़े को भिगा कर शिर पर रखना चाहिये, गुलाबजल अथवा गुलाबजल के साथ चन्दन को घिस कर अथवा उस में सांभर के सींग को घिस कर लगाना चाहिये।
१-क्योंकि किनाइन में मलेरिया की विषैली हवा के तथा उस से उत्पन्न हुए ज्वर आदि रोगों के दमन करने (दबा देने) की शक्ति है ॥ २-लीवर अर्थात् यकृत, जिसे भाषा में कलेजा कहते हैं ॥ ३-क्योंकि इस रोग में दस्त के साफ आते रहने से जल्दी फायदा होता है ।। ४-क्यों कि प्रदर रोग का मुख्य कारण योग्य अवस्था को पहुंचने के पूर्व ही पुरुषसङ्गम करना है। ५-क्योंकि आधाशीशी का एक कारण निर्बलता भी है ॥
४४ जै० सं०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com