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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
३-जायफल, अफीम तथा खारक (छुहारे) को नागरवेल के पान के रस में घोट कर तथा बाल के परिमाण की गोली बनाकर उस गोली को छाछ के साथ लेना चाहिये।
४-जीरा, भांग, बेल की गिरी तथा अफीम को दही में घोट कर बाल के परिमाण की गोली बना कर एक गोली लेनी चाहिये।
विशेषवक्तव्य-जब किसी को दस्त होने लगते हैं तब बहुत से लोग यह समझते हैं कि-नाभि के बीच की गांठ (धरन वा पेचोंटी) खिसक गई है इस लिये दस्त होते हैं, ऐसा समझ कर वे मूर्ख स्त्रियों से पेट को मसलाते (मलवाते) हैं, सो उन का यह समझना बिलकुल ठीक नहीं है और पेट के मसलाने से बड़ी भारी हानि पहुँचती है, देखो! शारीरिक विद्या के जाननेवाले डाक्टरों का कथन है कि-धरन अथवा पेचोंटी नाम का कोई भी अवयव शरीर में नहीं है और न नाभि के बीच में इस नाम की कोई गांठ है और विचार कर देखने से डाक्टरों का उक्त कथन बिलकुल सत्य प्रतीत होता है, क्योंकि किसी ग्रन्थ में भी धरन का स्वरूप वा लक्षण आदि नहीं देखा जाता है, हां केवल इतनी बात अवश्य है कि-रगों में वायु अस्तव्यस्त होती है और वह वायु किसी २ के मसलने से शान्त पड़ जाती है, क्योंकि वायु का धर्म है कि मसलने से तथा सेक करने से शान्त हो जाती है, परन्तु पेट के मसलने से यह हानि होती है कि-पेट की रगें नाताकत (कमजोर) हो जाती हैं, जिस से परिणाम में बहुत हानि पहुँचती है, इस लिये धरन के झूठे ख्याल को छोड़ देना चाहिये, क्योंकि शरीर में धरन कोई अवयव नहीं है।
अतीसार रोग में आवश्यक सूचना-दस्तों के रोग में खान पान की बहुत ही सावधानी रखनी चाहिये तथा कभी २ एकाध दिन निराहार लंघन कर लेना चाहिये, यदि रोग अधिक दिन का हो जावे तो दाह को न करनेवाली थोड़ी २ खुराक लेनी चाहिये, जैसे-चावल और साबूदाना की कुटी हुई घाट तथा दही चावल इत्यादि।
१-क्योंकि प्रथम तो उन लोगों का इस विषय में प्रत्यक्ष अनुभव है और प्रत्येक अनुभव सब ही को मान्य होता है और होना ही चाहिये और दूसरे-जब वैधक आदि अन्य ग्रन्थ भी इस विषय में वही साक्षी देते हैं तो भला इस में सन्देह होने का ही क्या काम है।। २-अस्तव्यस्त होती है अर्थात् कभी इकट्ठी होती है और कभी फैलती है ॥ ३-पेट के मसलने से प्रथम तो रगें नाता कत हो जाती हैं जिस से परिणाम में बहुत हानि पहुँचती है, दूसरे-यदि वायु की शान्ति के लिये मसला भी जावे तो आदत बिगड़ जाती है अर्थात् फिर ऐसा अभ्यास पड़ जाता है कि पेट के मसलाये विना भूख प्यास आदि कुछ भी नहीं लगती है, इस लिये पेट को विशेष आवश्यकता के सिवाय कभी नहीं मसलाना चाहिये ।।४-क्योंकि कभी २ एकाध दिन निराहार लंघन कर लेने से दोषों का पाचन तथा अग्नि का कुछ दीपन हो जाता है।
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