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जैनसम्प्रदायशिक्षा। __ डाक्टरों के मत से नाड़ीपरीक्षा-हमारे बहुत से देशी मनुष्य तथा भोले वैद्यजन ऐसा कहते हैं कि-"डाक्टर लोगों को नाड़ी का ज्ञान नहीं होता है और वे नाड़ी को देखते भी नहीं हैं" इत्यादि, सो उन का यह कथन केवल मूर्खता का है, क्योंकि डाक्टर लोग नाड़ी को देखते हैं तथा नाड़ीपरीक्षा पर ही अनेक बातों का आधार समझते हैं, जिस तरह से बहुत से तबीब नाड़ीपरीक्षा में बहुत गहरे उतरते हैं (बहुत अनुभवी होते हैं ) और नाड़ी पर ही बहुत सा आधार रख नाड़ीपरीक्षा के अनुभव से अनेक बातें कह देते हैं और उन की वे बातें मिल जाती हैं तथा जैसे देशी वैद्य जुदे २ वेगों की-नाड़ी के वायु की पित्त की कफ की और त्रिदोष की इत्यादि नाम रखते हैं, इसी तरह डाक्टरी परीक्षा में जल्दी, धीमी, भरी, हलकी, सख्त, अनियमित और अन्तरिया, इत्यादि नाम रक्खे गये हैं तथा जुदे २ रोगों में जो जुदी २ नाड़ी चलती है उस की परीक्षा भी वे लोग करते हैं, जिस का वर्णन संक्षेप से इस प्रकार है:१-जल्दी नाड़ी-नीरोगस्थिति में नाड़ी के वेग का परिमाण पूर्व लिख चुके हैं, नीरोग आदमी की दृढ़ अवस्था की नाड़ी की चाल ७५ से ८५ बारतक होती है, परन्तु बीमारी में वह चाल बढ़ कर १०० से १५० बारतक हो जाती है, इस तरह नाड़ी का वेग बहुत बढ़ जाता है, इस को जल्दी नाड़ी कहते है, यह नाड़ी क्षयरोग, लू का लगना और दूसरी अनेक प्रकार की निर्बलताओं में चलती है, झड़पवाली नाड़ी के संग हृदय का धबकारा बहुत ज़ोर से चलता है और नाड़ी की चाल हृदय के धबकारों पर ही विशेष आधार रखती है, इस लिये ज्यों २ नाड़ी की चाल जल्दी २ होती जाती है त्यों २ रोग का ज़ोर बहुत बढ़ता जाता है और रोगी का हाल विगढ़ता जाता है, बुखार की नाड़ी भी जल्दी होती है तथा ज्वरात (ज्वर से पीड़ित ) रोगी का अंग गर्म रहता है, एवं सादा बुखार, आन्तरिक ज्वर, सन्निपात ज्वर, सांधों का सख्त दर्द, सख्त खांसी, क्षय, मगज; फेफसा; हृदय; होजरी और आंतें आदि मर्म स्थानों का शोथ, सख्त मरोड़ा, कलेजे का पकना, आंख तथा कान का पकना, प्रमेह और सख्त गर्मी की टांकी
आदि रोगों की दशा में भी जल्दी नाड़ी ही देखी जाती है। २-धीमी नाड़ी नीरोगावस्था में जैसी नाड़ी चाहिये उस की अपेक्षा मन्द चाल से चलनेवाली नाड़ी को धीमी नाड़ी कहते हैं, जैसे-ठंढ, श्रान्ति, क्षुधा, दिलगिरी, उदासी, मगज़ की कई एक बीमारियां (जैसे मिरगी बेशुद्धि आदि) और तमाम रोगों की अन्तिम दशा में नाड़ी बहुत धीमी
चलती है। ३-भरी नाड़ी—जिस प्रकार नाड़ीपरीक्षा में अंगुलियों को नाड़ी का वेग अर्थात् चाल मालम देती है उसी प्रकार नाड़ी का वज़न अथवा कद भी
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