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जैनसम्प्रदायशिक्षा। अत्यन्त बुरा है, क्योंकि इस से जीवन की उन्नति की बहार लुट जाती है तथ' शारीरिक उन्नति का द्वार बन्द हो जाता है”।
उक्त डाक्टर साहब ने किसी समय सभा के बीच में यह भी वर्णन किया था कि-मैं अपनी तीस वर्ष की परीक्षा से यह कह सकता हूँ कि-फी सदी २५ स्त्रियां बाल्यावस्था के विवाह के हेतु से मरती है तथा फी सदी दो मनुष्य इसी से ऐसे हो जाते हैं कि जिन को सदा रोग घेरे रहते हैं और वे आधे आयु में ही मरते है ।
प्रिय सजनो! इस के अतिरिक्त अपने शास्त्रों की तरफ तथा प्राचीन इतिहासों की तरफ भी ज़रा दृष्टि दीजिये कि विवाह का क्या समय है और वह किस प्रयोजन के लिये किया जाता है-आप (ऋषिप्रणीत) ग्रन्थोंपर दृष्टि डालने से यह बात स्पष्ट प्रकट होती है कि विवाह का मुख्य प्रयोजन सन्तान का उत्पन्न करना है और उस का (सन्तानोत्पत्ति का) समय शास्त्रकारों ने इस प्रकार कहा है कि:
स्त्रियां पोडशवर्षायां, पञ्चविंशतिहायनः ॥
बुद्धिमानुयमं कुर्यात्, विशिष्टसुतकाम्यया ॥१॥ अर्थ-पच्चीस अर्ष की अवस्थावाले (जबान) बुद्धिमान् पुरुष को सोलह वर्ष की स्त्री के साथ सुपुत्र की कामना से संभोग करना चाहिये ॥ १ ॥
तदा हि प्राप्तवीर्यौ तौ, सुतं जनयतः परम् ॥
आयुर्बलसमायुक्तं, सर्वेन्द्रियसमन्वितम् ॥ २ ॥ अर्थ-क्योंकि उस समय दोनों ही (स्त्री पुरुष) परिपक्क (पके हुए) वीर्य से युक्त होने से आयु बल तथा सर्व इन्द्रियों से परिपूर्ण पुत्र को उत्पन्न करते हैं ॥२॥
न्यूनपोडशवर्षायां, न्यूनाब्दपञ्चविंशतिः॥ पुमान् यं जनयेद् गर्भ, स प्रायेण विपद्यते ॥३॥ अल्पायुर्वलहीनो वा, दारिद्योपद्रुतोऽथवा ॥
कुष्ठादिरोगी यदि वा, भवेद्वा विकलेन्द्रियः ॥ ४ ॥ अर्थ-यदि पच्चीस वर्ष से कम अवस्थावाला पुरुष-सोलह वर्ष से कम अवस्थावाली स्त्री के साथ सम्भोग कर गर्भाधान करे तो वह गर्भ प्रायः गर्भाशय में ही नाश को प्राप्त हो जाता है ॥ ३ ॥
अथवा वह सन्तति अल्प आयुवाली, निर्बल, दरिद्री, कुष्ट आदि रोगों से युक्त, अथवा विकलेन्द्रिय (अपांग) होती है ॥ ४ ॥
शास्त्रों में इस प्रकार के वाक्य अनेक स्थानों में लिखे हैं जिन का कहांतक वर्णन करें।
१-ये सब श्लोक जैनाचार्य श्रीजिनदत्तसूरियो “विवेकविलास" के पञ्चम उल्लास में लि वे है ।।
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