________________
चतुर्थ अध्याय ।
३४३
कारणों के द्वारा) निश्चय कर सकते हैं कि इन ऊपर कहे हुए कारणों से क्या सिद्ध होता है, केवल यही सिद्ध होता है कि निजकुटुम्ब में विवाह का होना सर्वथा निषिद्ध है, क्योंकि-देखो ! दुहिता शब्द का अर्थ तो स्पष्ट कह ही रहा है कि-कन्या का विवाह दूर होना चाहिये, अर्थात् अपने ग्राम वा नगर आदि में नहीं होना चाहिये, अब विचारो ! कि-जब कन्या का विवाह अपने ग्राम वा नगर आदि में भी करना निषिद्ध है तब भला निज कुटुम्ब में व्याह के विषय में तो कहना ही क्या है ! इस के अतिरिक्त विवाह की जो रत्तम मध्यम और अधम रूप ऊपर तीन रीतियाँ कही गई हैं वे भी घोषणा कर साफ २ बतलाती हैं कि-निज कुटुम्ब में विवाह कदापि नहीं होना चाहिये, देखो ! स्वयंवर की रीति से विवाह करने में यह होता था कि-निजकुटुम्ब से भिन्न (किन्तु देश की प्रथा के अनुसार स्वजातीय) जन देश देशान्तरों से आते थे और उन सब के गुण आदि का श्रवण कर कन्या उपर लिखे अनुसार सब बातों में अपने समान पति का स्वयं (खुद) वरण (स्वीकार ) कर लेती थी, अब पाठकगण सोच सकते हैं कि-यह (स्वयंवर की) रीति न केवल यही बतलाती है कि-निज कुटुम्ब में विवाह नहीं होना चाहिये किन्तु यह रीति दुहिता शब्द के अर्थ को
और भी पुष्ट करती है (कि कन्या का स्वग्राम वा स्वनगर आदि में विवाह नहीं होना चाहिये) क्योंकि यदि निज कुटुम्ब में विवाह करना अभीष्ट वा लोकसिद्ध होता अथवा स्वग्राम वा स्वनगरादि में ही विवाह करना योग्य होता तो स्वयंवर की 'चना करना ही व्यर्थ था, क्योंकि वह (निज कुटुम्ब में वा स्वग्रामादि में) विवाह तो विना ही स्वयंवर रचना के कर दिया जा सकता था, क्योंकि अपने कुटुम्ब के अथवा स्वग्रामादि के सब पुरुषों के गुण आदि प्रायः सब को विदित ही होते हैं, अब स्वयंवर के सिवाय जो दूसरी और तीसरी रीति लिखी है उस का भी प्रयोजन वही है कि जो ऊपर लिख चुके हैं, क्योंकि-ये दोनों रीतियां स्वयंवर नहीं तो उस का रूपान्तर वा उसी के कार्य को सिद्ध करनेवाली कही जा सकती हैं, इन में विशेपता केवल यही है कि-पति का वरण कन्या स्वयं नहीं करती थी किन्न माता पिता के द्वारा तथा ज्योतिषी आदि के द्वारा पति का वरण कराया जात था, तात्पर्य वही था कि-निज कुटुम्ब में तथा यथासम्भव स्वग्रामादि में कन्या का विवाह न हो। ___उ.पर लिखे अनुसार शास्त्रीय सिद्धान्त से तथा लौकिक कारणों से निजकुटुम्ब में विवाह करना निषिद्ध है अतः निर्बलता आदि दोषों के हेतु इस का सर्वथा परित्याग करना चाहिये।
३-बालकपन में विवाह-प्यारे सुजनो ! आप को विदित ही है कि इस वर्तमान समय में हमारे देश में ज्वर, शीतला, विधूचिका ( हैज़ा) और प्लेग आदि अनेक रोगों की अत्यन्त ही अधिकता है कि जिन से इस अभागे भारत की यह शोचनीय कुदशा हो रही है जिस का स्मरण कर अश्रुधारा बहने लगती है और दुःख विसराया भी नहीं जाता है, परन्तु इन रोगों से भी बड़ कर एक अन्य
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com