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चतुर्थ अध्याय ।
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ऊपर के कथन से स्पष्ट है कि तमाखू आदि का पीना महाहानिकारक है, परन्तु वर्तमान में लोग शास्त्रों से तो बिलकुल अनभिज्ञ हैं अतः उन को पदार्थों के गुण और दोष विदित नहीं हैं, दूसरे देशभर में इन कुव्यसनों का अत्यन्त प्रचार बढ़ रहा है जिस से लोग प्रायः उसी तरफ को झुक जाते हैं, तीसरे - कुव्यसनी लोगों ने भोले लोगों को बहकाने और फँसाने के लिये इन निकृष्ट वस्तुओंके सेवन की प्रशंसा में ऐसी २ कपोलकल्पित कवितायें रचडाली हैं जिन्हें सुनकर वे बेचारे भोले पुरुष उन वाक्यों को मानो शास्त्रीय वाक्य समझ कर बहक जाते और फँस जाते हैं अर्थात् उन्हीं निकृष्ट पदार्थों का सेबन करने लगते हैं, देखिये ! इन कुव्यसनी लोगों की कविता की तरफ दृष्टि डालिये और विचारिये कि इन्हों ने भोले भाले लोगों के फँसाने के लिये कैसी माया रची है:
अफीम - गज गाहण डाहण गढां, हाथ या देण हमल्ल || मतवालां पौरष चड़े, आयो मीत अमल ॥ १ ॥
हुक्का - अस चढ़ना अस उचकना, नित खाना खिर गोश || जगमांही जीना जिते, पीना चम्मर पोश ॥ १ ॥ शिरपर बँधा न सेहरा, रण चढ़ किया न रोस ॥ लाहा जग में क्या लिया, पिया न चम्मर पोस ॥ २ ॥ हुकाहरि को लाड़लो, राखे सब को मान ॥
भरी सभा में यों फिरे, ज्यों गोपिन में कान ॥ ३॥ -दारू पियो रंग करो, राता राखो नेंण ॥
बेरी थांरा जलमरे, सुख पावेला सैंण || १ ||
मद्य
१ - आजकल राजपूतों में अफीम बड़ी ही जरूरी चीज समझी जाती है अर्थात् इस की जरूरत सन्तान के पैदा होने, सगाई, व्याह, लड़ाई और गर्मी आदि प्रत्येक मौके पर उन को होती है, इन अवसरों में वे लोग अफीम को बांटते हैं और गालवां कर के लोगों को पिलाते हैं, उन लोगों में सब बढ़ कर बात यह है कि किसी आदमी से चाहे कितनी ही अदावत हो परन्तु जब उस के हाथ से अफीम ले ली तो बस उसी दम सफाई हो जावेगी, राजपूत लोग अफीम के नशे को मर्द नशाभी कहते हैं अर्थात् मद्य के नशे से इसे अच्छा मानते हैं और इस का बहुत बखान भी करते हैं, यद्यपि अफीम का प्रचार उत्तर पश्चिम मारवाड़ में और मद्य का प्रचार पूर्व में अधिक है तथापि प्रायः सर्दार और जागीरदार लोग मद्य से ही विगड़ते और मरते हैं क्योंकि वे लोग इस का पीना बचपन से ही गोले गोलियों की खराब संगति में पड़ कर सीख जाते हैं, फिर - ढोली, डाढी, रण्डी और भडुए आदि मद्य की तारीफ के गीत गा २ कर उन के नशे को प्रतिदिन बढ़ाते रहते हैं, जैसी कि मद्य की महिमा कुछ ऊपर लिख कर बतलाई है, इसका प्रचार केवल किसी देशविशेष में ही हों यह बात नहीं है किन्तु संपूर्ण आर्यावर्त्त में यही दशा हो रही है इस लिये बुद्धिमानों का यही कर्त्तव्य है कि अपने और समस्त देश के हिताहित का विचार कर इन कुव्यसनों को दूर करें |
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