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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
प्रिय सुजनो ! केवल पदार्थविद्या के न जानने तथा वैद्यकशास्त्र पर ध्यान न देने के कारण इस प्रकार की अनेक मिथ्या बातों में फँसे हुए लोग चले जाते हैं जिस से सब के धर्म कर्म तथा आरोग्यता आदि में अन्तर पड़ गया और प्रतिदिन पड़ता जाता है, अतः अब आप को इन सब हानिकारक बातों का पूरा २ प्रवन्ध करना योग्य है कि जिस से आप के भविष्यत् ( होनेवाले ) सन्तानों को पूर्ण सुख तथा आनन्द प्राप्त हो ।
हे विद्वान पुरुषो ! और हे प्यारे विद्यार्थियो ! आपने स्कूलों में पदार्थविद्या को अच्छे प्रकार से पढ़ा है इसलिये आप को यह बात अच्छे प्रकार से मालूम है और हो सकती है कि तमाखू में कैसे २ विषैले पदार्थ मिश्रित हैं और आप लोगों को इस के पीने से उत्पन्न होनेवाले दोष भी अच्छे प्रकार से प्रकट हैं, अतः आप लोगों का परम कर्त्तव्य है कि इस महानिकृष्ट हुक्के के पीने का स्वयं त्याग कर अपने भाइयों को भी इस से बचावें, क्योंकि सत्य विद्या का फल परोपकार ही है ।
इस के अतिरिक्त यह भी सोचने की बात है कि तमाखू आदि के पीने की आज्ञा किसी सत्यशास्त्र में नहीं पाई जाती है किन्तु इस का निषेध ही सर्व शास्त्रों में देखा जाता है, देखो -
तमापत्रं राजेन्द्र, भज माज्ञानदायकम् ॥ तमाखुपत्रं राजेन्द्र, भज माज्ञानदायकम् ॥
१ ॥
अर्थात् हे राजेन्द्र ! अज्ञान को देनेवाले तमाखुपत्र ( तमाखू के पत्ते ) का सेवन मत करो किन्तु ज्ञान और लक्ष्मी को देनेवाले उस आखुपत्र अर्थात् गणेश देव का सेवन करो ॥ १ ॥
धूम्रपानरतं विप्रं, सत्कृत्य च ददाति यः ॥
दाता स नरकं याति ब्राह्मणो ग्रामशुकरः || २ ||
अर्थात् जो मनुष्य तमाखू पीनेवाले ब्राह्मण का सत्कार कर उस को दान देता है वह (दाता) पुरुष नरक को जाता है और वह ब्राह्मण ग्राम का शुकर (सुअर) होता है ॥ २ ॥ इसी प्रकार शार्ङ्गधर वैद्यक ग्रन्थ में लिखा है कि - "बुद्धि लुम्पति यद्रव्यं मदकारि तदुच्यते" अर्थात् जो पदार्थ बुद्धि का लोप करता है उस को मदकारी कहते हैं ।
१ - इसी प्रकार देशी पाठशालाओं तथा कालिजों के शिक्षकों को भी योग्य है कि वे कदापि इस हुक्के को न पिये कि जिन की देखादेखी सम्पूर्ण विद्यार्थी भी चिलम का दम लगाने लगते हैं ॥ २–यह सुभाषितरत्नभांडागार के प्रारंभ में शोक है । ३- यह पापुराण का वाक्य है । ४- तात्पर्य यह है कि मदकारी पदार्थ बुद्धि का लोप करता है ॥
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