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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
बरसने पर नाना प्रकार के बीजों के अङ्कुर निकल आते हैं, इसी प्रकार उपर कहे हुए पदार्थों के खाने से एकदम हानि नहीं मालूम होती है किंतु वे इकट्ठे होकर किसी समय एकदम अपना जोर दिखा देते हैं, जो २ पदार्थ दूध के साथ में मिलने से विरोधी हो जाते हैं उन को तो हम दूध के प्रकरण में पहिले लिख चुके हैं, शेष कुछ पदार्थों को यहां लिखते हैं - केला और छाछ, केला और दी, दही और उष्ण पदार्थ, घी और शहद समान भागमें तथा शहद और पनी बराबर बज़न में, ये सब पदार्थ सङ्गदोष से अत्यन्त हानिकारक हो जाते हैं अर्थात् विप के तुल्य होजाते हैं, एवं बासा अन्न फिर गर्म करने से अत्यन्त हानि करता है, इस के सिवाय गर्म पदार्थ और वर्षा के जल के साथ शहद, खिचड़ी के साथ खीर, बेल के फल के साथ केला, कांसे के पात्र में दशदिनतक रक्खा रहा हुआ घी, जल के साथ घी और तेल, तथा पुनः गर्म किया हुआ काड़ा, ये सब ही पदार्थ हानिकारक हैं, इसलिये इन का त्याग करना चाहिये ।
१२- सायंकाल का भोजन दो घड़ी दिन शेष रहने पर ही कर लेना चाहिये, तथा शाम को हलका भोजन करना चाहिये किन्तु रात्रि में भोजन कभी नहीं करना चाहिये, क्योंकि जैन सिद्धान्त में तथा वैद्यक शास्त्रों में रात्रिभोजन का अत्यंत निषेध किया है, इस का कारण सिर्फ यही है कि रात्रि को भोजन करने में भोजन के साथ छोटे २ जन्तुओंके पेट में चले जाने के द्वारा अनेक हानियों क सम्भावना रहती है, देखो ! रात्रि में भोजन के अन्दर यदि लाल तथा काली चीटियां खाने में आजावें तो बुद्धि भ्रष्ट होकर पागलपन होता है, जुयें से जलोदा, कांटे तथा केश से स्वरभंग तथा मकड़ी से पित्ती के ददोड़े, दाह, वमन और दत आदि होते हैं, इसी प्रकार अनेक जन्तुओं से बदहज़मी आदि अनेक रोगों के होने की सम्भावना रहती है, इस लिये रात्रि का भोजन अन्धे के भोजन के समान होता है, (प्रश्न ) बहुत से महेश्वरी वैश्यों से सुना है कि हमारे शास्त्रों में एक सूर्य में दो वार भोजन का करना मना है इसलिये दूसरे समय का भोजन रात्रे में ही करना उचित है, ( उत्तर ) मालूम होता है कि उन ( वैश्यों ) को उन पोप और स्वार्थी गुरुओं ने अपने स्वार्थ के लिये ऐसा बहका दिया है और बेचार भोले भाले महेश्वरी वैश्यों ने अपने शास्त्रों को तो देखा नहीं, न देखने की उ में शक्ति है इस लिये पोप लोगों से सुन कर उन्हों ने रात्रि में भोजन करने वा प्रारम्भ कर दिया, देखो ! हम उन्हीं के शास्त्रों का प्रमाण रात्रिभोजन के निषेध देते हैं- यदि अपने शास्त्रों पर विश्वास हो तो उन महेश्वरी वैश्यों को इस भ और पर भव में दुःखकारी रात्रिभोजन को त्याग देना चाहिये
१- शेष संयोग विरुद्ध पदार्थों का वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देखना चाहिये ॥ २ यद्यपि और शहद तथा शहद और जल प्रायः दवा आदि के काम में लिया जाता है और वह बहु फायदेमन्द भी है परन्तु बराबर होने से हानि करता है, इस लिये इन दोनों को समान नागर्न कभी नहीं लेना चाहिये ||
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