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जैनसम्पदायशिक्षा।
से गोल तथा एक गज़ लम्बी और एक बालिश्त ऊंची एक चौकी को सामने रख कर उस के ऊपर यथायोग्य सम्पूर्ण पदार्थों से सजित थाल को रख कर मुनि को देने की भावना भावे, पश्चात् आनंदपूर्वक भोजन करे, भोजन में प्रथम पेंधा नमक लगा कर अदरख के दश बीस टुकड़े खाना बहुत अच्छा है, भोजन भी सीधे आसन से बैठ कर करना चाहिये अर्थात् झुक कर नहीं करना चाहिये, क्योंकि झुक कर भोजन करने से पेट के दबे रहने के कारण पक्काशय की धरनी निर्बल हो जाती है और उस के निर्बल होने से भोजन समय पर नहीं पचता है इस लिये सदा छाती उठा कर भोजन करना चाहिये ।
८-भोजन करते समय न तो अति बिलम्ब और न अति शीघ्रता ही करनी चाहिये अर्थात् अच्छी तरह से धीरे २ चबा २ कर खाना चाहिये, क्योंकि अच्छी तरह से धीरे २ चबा २ कर न खाने से भोजन के पचने में देरी लगती है तथा यह हानि भी करता है, भोजन के चबाने के विपय में डाक्टरों का यह सिदान्त है कि जितने समयमें २५ की गिनती गिनी जा सके उतने समय तक एक ग्रास को चबा कर पीछे निगलना चाहिये ।
९-भोजन करने के समय माता, पिता, भाई, पाककर्ता, वैद्य, मित्र, पुत्र तथा स्वजनों (सम्बन्धियों) को समीप में रखना उचित है, इन के रिवाय किसी भिन्न पुरुष को भोजन करने के समय समीप में नहीं रहने देना चः हेये, क्योंकि किसी २ मनुष्य की दृष्टि महाखराब होती है, भोजन करने के समः में वार्तालाप करना भी अनुचित है, क्योंकि एक इन्द्रिय से एक समय में दो कार्य ठीक रीति से नहीं हो सकते हैं, किन्तु दोनों अधूरे ही रह जाते हैं, अतः एक समय में एक इन्द्रिय से एक ही काम लेना योग्य है, हां मित्र आदि लोग भोजन
१-बहुत से लोग इस कहावत पर आरूढ हैं कि-"स्त्री का नहाना और पुरुप का खाना' तथा इस का अर्थ ऐसा करते हैं कि स्त्री जैसे फुती से नहा लेती है वैसे ही पुरुष को फुर्ती के साथ भोजन कर लेना चाहिये, परन्तु वास्तव में इस कहावत का यह अर्थ नहीं है जैमा कि समझ रहे हैं, क्योंकि आजकल की मूर्ख स्त्रियां जो स्नान करती हैं वह वास्तव में खान ही ना है, आजकल की स्त्रियों का तो स्नान यह है कि उन्होंने नग्न होकर शरीर पर पानी डाला और तत्काल घाघरा पहना, बस स्नान हो गया, अब अविद्या देवी के उपासकों ने यह समझ लि । कि स्त्री का नहाना और पुरुष का खाना समान समय में होना चाहिये, परन्तु उन को कुछ अक से भी खुदा को पहचानना चाहिये (कुछ तो बुद्धि से भी सोचना चाहिये ) देखो! प्रथम लिख आये हैं कि-स्नान केवल शरीर के मैल को साफ करने के लिये किया जाता है तो यह स्नान (कि स्त्री ने शरीर पर पानी डाला और तत्काल घाघरा पहना) क्या वास्तव में लान क । जा सकता है ? कभी नहीं, क्योंकि कहिये इस खान से क्या लाभ है ! इस लिये यद्यपि यह कहावत तो ठीक है परन्तु अविद्यादेवी के उपासकों ने इस का अर्थ उलटा कर लिया है, इस का समली मतलब यह है कि-जैसे स्त्री एकान्त में बैठकर धीरे २ नहाती है अर्थात् सम्पूर्ण शरीर का मैल दूर करती है उसी प्रकार से पुरुष भी एकान्त में बैठ कर स्थिरता के साथ अर्थात् खूब वा २ कर भोजन करे।।
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