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चतुर्थ अध्याय ।
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किन्तु उचित तो यह है कि - यथाशक्य गरिष्ठ पदार्थों का सेवन ही न किया जावे और यदि किया भी जावे तो खुराक की मात्रा से कम किया जावे।
वर्त्तमान समय में इस देश में शाक और दाल आदि में बहुत मिर्च, इमली, • अचार, चटनी और गर्म मसालों के खाने का रिवाज़ बहुत ही बढ़ता जाता है, यह बड़ी हानिकारक बात है, इस लिये इस को शीघ्र ही रोकना चाहिये, देखो ! इस हानिकारक व्यवहार का उपयोग करने से शरीर का रस बिगड़ता है, खून गर्म हो जाता है और पित्त बिगड़ कर अपना मार्ग छोड़ देता है, इसी से तरह २ के रोगों का जन्म होता है जिन का वर्णन कहांतक किया जावे ।
गर्म प्रकृतिवाले पुरुष को गर्म मसालों का सेवन कभी नहीं करना चाहिये, क्यों कि ऐसा करने से उस को बहुत हानि पहुँचेगी, यदि गर्म मसालों की ओर चिन चलायमान भी हो तो धनियां जीरा और सेंधानमक, इस मसाले का उपयोग कर दे, क्योंकि यह साधारण मसाला है तथा सब के लिये अनुकूल आ सकता है, यदि चरपरी वस्तु के खाने की इच्छा हो तो काली मिर्च का सेवन कर लेना चाहिये किन्तु लाल मिर्च को कभी नहीं खाना चाहिये ।
वर्त्तमान समय में लोगों में लाल मिर्च के खाने का भी प्रचार बहुत बढ गया है, यह भी अत्यन्त हानिकारक है, बहुत से लोग यह कहते हैं कि जितना चरपराप्न लाल मिर्च में है उतना दूसरी किसी चीज़ में नहीं है इस लिये चरपरी चीज
; - बहुत से वुभुक्षित ब्राह्मणों आदि को जब मिष्टान्न खाने को मिलता है तब वे औघड़ों की नाति घर की सदा की खुराक की अपेक्षा दुगुना तथा तिगुना माल खा जाते हैं और ऊपर से चमचमाहट करते हुए शाक, दाल, अचार और चटनी आदि पदार्थों को भी उदरदरी में पधारते हैं, यह बड़ी भूल की बात है, क्योंकि इस से बहुत हानि होती है अथात् ऐसा करने से पाचनशक्ति का समान रहना अतिकठिन है, यदि कोई पेटार्थी ऐसा हिसाब लग कि मैं आध सेर अन्न अथवा तर माल का खानेवाला हूँ किन्तु मैं एक रुपये भर गर्भ नसाला खाकर सेरभर माल को हजम कर लूंगा, तथा दो रुपये भर गर्भ मसाला खाकर दो सेर माल को हजम कर लूंगा, इसी प्रकार पांचरुपये भर गर्म मसाले से पांच सेर नहीं तो तीन सेर तो अवश्य ही हजम कर लूंगा, तो उस का यह त्रैराशिक ( त्रिराशिका हिसाब )
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यदि वह उक्त हिसाव को लगा कर वैसा करेगा २-बीकानेर के ओसवाल और तैलंग देशवाले शायद ही कहीं कोई खाता होगा, यद्यपि
ख़ुराक के विषय में काम में नहीं आयेगा, और तो अजीर्ण होकर उसे अवश्य मरना पड़ेगा लोग जितनी लाल मिर्च खाते हैं उतनी मिर्च द्रव्यपात्र ओसवालों के यहां मिर्च के साथ घृत (घी) भी अधिक डालकर खाते हैं जिस से मिर्च की गर्मी कुछ कम हो जाती है परन्तु वर्तमान में इस ( बीकानेर ) नगर में ओसवालों में सामान्यतया तिलोक चंदजी (तैल) ही का बर्ताव बहुत है, इसी प्रकार तैलंग लोग चावल और इमली मिर्च की चटनी को रूखी ( विना घृत के ) ही खाते हैं, मलेवारवाले लोग कच्चे नारियल और थोडी सी मिर्चों की चटनी बना कर भात के साथ खाते हैं, घी मिर्च की गर्मी को शान्त करनेवाला है परन्तु वर्त्तमान में उस के विषय में तो यह कहावत चरितार्थ होने लगी है कि घी का और खुदा का मुँह किस ने देखा है |
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