________________
२४४
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
विचार करे कि मैं गर्म मसालों या गर्म दवा से अग्नि को तीव्र कर अधिक खुराक को खाकर कद और ताकत में बढ़ जाऊं तो यह उसकी महाभूल है, क्योंकि ऐसा विचार कर यदि वह तदनुसार वर्ताव करेगा तो अपनी असली ताकत को भी खो बैठेगा, क्योंकि जैसे अधिक जोर के काम करने के लिये बड़े एञ्जिन और बड़े बायलर को बनाना पड़ता है उसीप्रकार अधिक ताकत के बढ़ाने के लिये भी नयासम दवा के उपयोग, ब्रह्मचर्य व्रत के पालन और उचित वर्ताब से चलने आदि की आवश्यकता है अर्थात् इस व्यवहार से स्वाभाविक शक्ति उत्पन्न होती है और स्वाभाविक शक्तिवाला पुरुष महाशक्ति सम्पन्न तथा बड़े कदवाले सन्तान को उत्पन्न कर सकता है, ऐसे मनुष्यको नकली उपचार करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती है।
प्रिय पाठकगण! क्या आपने इतिहास में नहीं पढ़ा है कि-हमारे इस देश के राठौर आदि राजा लोग बारह २ वर्ष तक दिल्ली में बादशाह के पास रह कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते थे और जब वे लोग ऋतु के समय अपनी पत्नी में गमन करते थे तब उन के अमोघ ( निष्फल न जानेवाले) वीर्य से केशरीसिंह. पद्मसिंह, जयसिंह कच्छाबा और प्रतापसिंह सिसोदिया जैसे पुरुष सिंह उत्पन्न होतेथे, यद्यपि खुराक उन की साधारण ही थी परन्तु वीव अत्युत्तम था।
बहुत से अज्ञ लोग इस कथनसे यह न समझ जावें कि शास्त्रकारों गर्म मसालों की अत्यन्त निन्दा की है इसलिये इन को कभी नहीं खाना चाहिये, इस लेख का तात्पर्य केवल यही है कि-देश, काल और प्रकृति के द्वारा अपने हिताहित का विचार कर प्रत्येक वस्तु का उपयोग करना चाहिये, क्योंकि जिस को अपने हिताहित का विचार हो जाता है वह पुरुष कभी धोखे में नहीं आता है, तात्पर्य यह है कि गर्म मसालों का निषेध जिस विषय में किया है उसी विषय में 'न का निषेध समझना चाहिये, तथा जिस विषय में उन का अंगीकार करना लिखा है उसी विषय में उन का अंगीकार करना चाहिये, जैसे-देखो ! जिस मनुष्य की अत्यन्त वायु की तासीर हो तो वायु को शरीर में वराबर रखने के लिये खुराक के साथ उस को परिमित गर्म मसाला लेना चाहिये, इसीप्रकार जब मिठाई आदि गरिष्ट पदार्थ खाने हों तब उन के साथ भी गर्म मसाले और चटनी आदि खाने चाहिये, किन्तु साधारण खुराक में गर्म मसालों का विशेष उपयोग करना आव. श्यक नहीं है, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि-गरिष्ठ पदार्थों के पचाने के लिये जो गर्म मसाले मिर्च और चटनी आदि खाये जावें वे भी परिमित ही खारे जावे,
१-स्याद्वादपक्षन्याय के देखने से मनुष्य को किसी प्रकार की शङ्का नहीं प्राप्त होती है ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com