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चतुर्थ अध्याय ।
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इमली को भिगोकर उस के गूदे में नमक डाल कर पैरों के तलवों और हथेलियों में मसलने से लगी हुई लू शीघ्र ही मिट जाती है।।
नारियल-बहुत मीठा, चिकना, हृदय को हितकारी, पुष्ट, बस्तिशोधक और रक्तपित्तनाशक है, पारेआदि की गर्मी में तथा अम्लपित्त में इस का पानी तथा गालिकेरखण्डपाक बहुत फायदेमन्द है और वीर्यवर्धक है। __ कई देशों में बहुत से लोग नारियल के पानी को उष्ण ऋतु में पीते हैं यह वेशक फायदेमन्द होता है, परन्तु इतना अवश्य खयाल रखना चाहिये कि, निरन्न (निल्ने, खाली अर्थात् अन्न खाये विना) कलेजे तथा दिन को निद्रा लेकर उठने के पीछे एक घण्टेतक इस को नहीं पीना चाहिये; जो इस बात का खयाल नहीं रक्खेगा उस को जन्म भर पछताना पड़ेगा।
खरबूजा तथा मीठे खट्टे काचर-ये भी ककड़ी ही की एक जाति हैं, जो नदी की बालू में पकता है उस को खरबूजा कहते हैं, यह स्वाद में मीठा होता है, लखनऊ के खरबूजे बहुत मीठे होते हैं, लोग इस का पना बना कर भी खाते हैं, यह गर्म होता है, जिन दिनों में हैजा चलता हो उन दिनों में खरबूजा बिलकुल नहीं खाना चाहिये । __जो जमीन तथा खेतों में पके उसे ककड़ी और काचर कहते हैं, ककड़ी और काचर मारवाड़ आदि देशों में बहुत उत्पन्न होते हैं, ककड़ी को सुखा कर उस का सूखा शाक भी बनाते हैं उस को खेलरा कहते हैं, तथा काचर को सुखाकर उस का जो सूखा शाक बनाते हैं उस को काचरी कहते हैं, इस को दाल या शाक में डालते हैं, यह खाने में स्वादिष्ठ तो होता है तथा लोग इसे प्रायः खाते भी हैं, परन्तु गुणों में तो सब फलों की अपेक्षा हलके दर्जे के (अल्प गुणवाले) तथा हानिकारक फल ये ही (ककड़ी और काचर) हैं, क्योंकि ये तीनों दोषों को विगाड़ते हैं, ये कच्चे-वायु और कफ को करते हैं किन्तु पकने के बाद तो विशेष (पहिले की अपेक्षा अधिक) कफ तथा वायु को विगाड़ते हैं।
कलिन्द (मतीरा वा तरबूज)-इस के गुण शाकवर्ग में पूर्व लिखचुके हैं, विशेष-कर यह भी गुणों में ककड़ी और काचर के समान ही है। __ अभ्रक, पारदभस्म (पारे की भस्म) और स्वर्णभस्म, इन तीनों की मात्रा लेते समय ककाराष्टक (ककारादि नामवाले आठ पदार्थ) वर्जित हैं, क्योंकि उक्त मात्राओं के लेते समय ककाराष्टक का सेवन करने से वे उक्त मात्राओं के गुणों को खराब कर देते हैं, ककाराष्टक ये हैं-कोला, केले का कन्द, करोंदा, कांजी, कैर, करेला, ककड़ी और कलिन्द (मतीरा), इस लिये इन आठों वस्तुओं का उपयोग उक्त धातुओं की मात्रा लेनेवाले को नहीं करना चाहिये ।
१-सुना है कि खरबूजे का पना और चांवल खाते समय यदि गुचलका आ जावे तो प्राणी अवश्य मर ही जाता है, क्योंकि इस का कुछ भी इलाज नहीं है ।
२० जे० स०
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