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जनसम्प्रदायशिक्षा |
सकरकन्द - मधुर, रुचिकर, हृदय को हितकारी, शीतल, ग्राही और पित्तहर है, अतीसार रोगी को फायदेमन्द है, इस का मुरब्बा भी उत्तम होता है ।
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अञ्जीर-ठंढी और भारी है, रक्तविकार, दाह, वायु तथा पित्त को नष्ट करती है, देशी अञ्जीर को गूलर कहते हैं, यह प्रमेह को मिटाता है परन्तु इस में छोटे २ जीव होते हैं इस लिये इस को नहीं खाना चाहिये ।
असली अञ्जीर काबुल में होती है तथा उस को मुसलमान हकीम व मारों को बहुत खिलाया करते हैं ।
इमेल - कच्ची इमली के फल अभक्ष्य हैं इसलिये उन को कभी उपयोग में नहीं लाना चाहिये, क्योंकि उपयोग में लाने से वे पेट में दाह रक्तपित्त और आम आदि अनेक रोगों को उत्पन्न करते हैं ।
पकी इमली - वायु रोग में और शूल रोग में फायदेमन्द है, यह बहुत ठंढी होने के कारण शरीर के सांधों (सन्धियों ) को जकड़ देती है, न को ढीला कर देती है इस लिये इस को सदा नहीं खाना चाहिये ।
चीनापन, इविड़, कर्णाटक तथा तैलंग देशवासी लोग इस के रस में मिर्च, मसाला अरहर (तूर) की दाल का पानी और चांवलों का मांड डाल कर उस को गर्म कर (उबाल कर ) भात के साथ नित्य दोनों वक्त खाते हैं, इसी प्रकार अभ्यास पड़ जाने से गर्म देशों में और गर्म ऋतु में भी बहुत से लोग तथा गुजराती लोग भी दाल और शाकादि में इस को डाल कर खाते हैं, तथा गुजराती लोग गुड़ डाल कर हमेशा इस की कड़ी बना कर भी खाते हैं, हैदराबाद आदि नगरों में बीमार लोग भी इमली का कट्ट खाते हैं, इसी प्रकार पूर्व देशवाले लोग अमचुर की खटाई डाल कर मांडिया बना कर सलोनी दाल और भात के साथ खाते हैं, परन्तु निर्भय होकर अधिक इसली और अमचुर आदि खटाई खाना अच्छा नहीं है, किन्तु ऋतु तासीर रोग और अनुपान का विचार कर इन का उपयोग करना उचित है क्योंकि अधिक खटाई हानि करती है ।
नई इमली की अपेक्षा एक वर्ष की पुरानी इमली अच्छी होती है, उसके नमक लगा कर रखना चाहिये जिस से वह खराब न हो ।
इमली के शर्वत को मारवाड़ आदि देशों में अक्षयतृतीया के दिन बहुत से लोग बनाकर काम में लाते हैं यह ऋतु के अनुकूल है ।
१- इसी प्रकार वह और पीपल आदि वृक्षों के फल भी जैन सिद्धान्त में अभक्ष्य लिखे हैं, क्योंकि इन के फलों में भी जन्तु होते हैं, यदि इस प्रकार के फलों का सेवन किया जाये तो पेट में जाकर अनेक रोगों के कारण हो जाते हैं । २ - इस को अमली, आँबली तथा पूर्व में चिया और ककोना भी कहते हैं ।। ३- देखो किसी का वचन है कि - " गया मर्द जो खाय खाई गई नारि तो खाय मिठाई ॥ गई हाट जँह मँडी हथाई, गया वृक्ष जँह बगुला बैठा | गया ह जह मोड़ा (धूर्त साधु) पैठा ॥ १ ॥
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