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चतुर्थ अध्याय ।
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इस
लिये जहांतक हो सके दूध का सेवन सदा करते रहना चाहिये, देखो ! पारसी और अंग्रेज़ आदि श्रीमान् लोग दूध और उस में से निकाले हुए मक्खन मलाई और पनीर आदि पदार्थों का प्रतिदिन उपयोग करते हैं परन्तु आर्य जाति
श्रीमान् और भाग्यवान् लोग तो शाक राहता और लाल मिर्च आदि के मसालों आदि के शौक में पड़े हुए हैं, अब साधारण गरीब लोगों की तो बात ही क्या कहें ! इस का असली कारण सिर्फ यही है कि-आर्य जातिके लोग इस विद्या को बिलकुल नहीं समझते हैं, इसी प्रकार से दूध की खुराक के विषय में मारवाड़ी प्रजा भी बिलकुल भूली हुई है, जब यह दशा है तो कहिये शरीर की स्थिति कैसे सुधर सकती है ? इस लिये इस देश के भाग्यवानों को उचित है कि - किस्से कहानी की पुस्तकों के पढ़ने तथा इधर उधर की निकम्मी गप्पों के द्वारा अपने समय को व्यर्थ में न गँवा कर उत्तमोत्तम वैद्यकशास्त्र और पाकविद्या के ग्रन्थों को घण्टे दो घण्टे सदा पढ़ा करें तथा घर में रसोइया भी उसी को रक्खें जो इस विद्या का जाननेवाला हो तथा जिस प्रकार गाड़ी घोड़े आदि सब सामान रखते हैं। उसी प्रकार गाय और भैंस आदि उपयोगी पशुओं को रखना उचित है, बल्कि गाड़ी घोड़े आदि के खर्च को कम करके इन उपयोगी पशुओं के रखने में अधिक खर्च करना चाहिये, क्योंकि गाड़ी घोड़ों से उतनी भाग्यवानी नहीं ठहर सकती है कि जितनी गायों और भैंसो से ठहर सकती है, क्योंकि इन पशुओं की पालना कर इनके दूध घी और मक्खन आदि बुद्धिवर्धक उत्तमोत्तम पदार्थों के खाने से उन की और उन के लड़कों की बुद्धि स्थिर होकर बढ़ेगी तथा बुद्धि के बढ़ने से श्रीमत्त्व ( श्रीमन्ताई वा भाग्यवानी ) अवश्य बनी रहेगी, इस के सिवाय यह भी है कि - जितनी गायें और भैंसें पृथिवी पर अधिक होंगी उतना ही दूध और घी अधिक सस्ता होगा ।
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विचार कर देखने से प्रतीत होता है कि इन पशुओं से देश को बहुत ही लाभ पहुँचता है अर्थात् क्या गरीब और क्या अमीर सब का निर्वाह इन्हीं पशुओं से होत है; इस लिये इन पशुओं की पूरी सार सम्भाल और रक्षा कर अपनी आरोयतः को कायम रखना और देश का हित करना सर्व साधारण का मुख्य कर्तव्य है, देखो ! जब यह आर्यावर्त्त देश पूर्णतया उन्नति के शिखर पर पहुँचा हुआ था तब इस देश में इन पशुओंकी असंख्य कोटियां थीं परन्तु जब से दुर्भाग्य वश इस पवित्र देश की वह दशा न रही और मांसाहारी यवनों का इस पर अधिकार हुआ तब से मांसाहारियों ने इन पशुओं को मार २ कर इस देश को सब तरह से लाचार और निःसत्व कर दिया, परन्तु सब जानते हैं कि वर्तमान समय श्रीमती
१- देखो उपासकदशासूत्र में दश बड़े श्रीमान् श्रावकों का अधिकार है, उस में यह लिखा हैकि - - कामदेव जी के ८० हजार गायें थीं तथा आनन्द जी के ४० हजार गायें थीं, इस प्रकार से दशों के गोकुल था ।
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