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प्रथम अध्याय ।
तीसरा प्रकरण | ( वर्णविचार )
१ -- भाषा उसे कहते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के विचार का प्रकाश करता है ॥
२-- भाषा वाक्यों से, वाक्य पदों से और पद अक्षरों से बनते हैं ॥ ३ -- व्याकरण उस विद्या को कहते हैं जिसके पढ़ने से मनुष्य को बोलने अथवा लिखने का ज्ञान होता है |
४ -- व्याकरण के मुख्य तीन भाग हैं— वर्णविचार, वाक्यविन्यास |
५-
-- वर्णविचार में अक्षरों के आकार, उच्चारण और उनकी मिलावट आदि है
का वर्णन
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६ - - शब्दसाधन में शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन है. 11 ७- - वाक्यविन्यास में शब्दों से वाक्य बनाने की रीति का वर्णन है ॥
वर्णविचार |
१- अक्षर - शब्द के उस खंड का नाम है जिस का विभाग नहीं हो सकता ॥ २-- अक्षर दो प्रकार के होते हैं स्वर और व्यञ्जन ॥
३ - स्वर उन्हें कहते हैं जिनका उच्चारण अपने आप ही हो ॥
४- - स्वरोंके हस्व और दीर्घ ये दो भेद हैं, इन्हीं को एकमात्रिक औ द्विमात्रिक भी कहते हैं ॥
५ - व्यञ्जन उन्हें कहते हैं जिनका उच्चारण स्वरकी सहायता विना नहीं हो
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जिसे क के आगे कार लगानेसे ककार इत्यादि ॥
सकतः ॥
६ - अनुस्वार और विसर्ग भी एक प्रकार के व्यञ्जन माने गये हैं |
७ - किसी अक्षर के आगे कार शब्द जोड़ने से वही अक्षर समझा जाता
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शब्दसाधन
शुद्ध २
और
१. यद्यपि यह प्रकरण वर्णविचार नामक है की कुछ आवश्यक बातें प्रथम दिखाई गई हैं ॥ भवति व्यञ्जनम् ॥
८ - जबतक स्वर किसी व्यञ्जन से नहीं मिलते में रहते हैं परन्तु मिलने पर मात्रारूप में क्रू+उ =कु, क्+ए=के, इत्यादि ॥
९ - जिसमें दो या दो से अधिक अक्षर एकमें मिले रहते हैं उसे संयुक्ताक्षर कहते हैं, जैसे अल्प, सत्य, इनमें ल्प और त्य संयुक्ताक्षर हैं ॥
तबतक अपने असली स्वरूप
हो जाते हैं. जैसे क् +अ =क, क् +इ = कि,
१० - संस्कृत में संयुक्त वर्ण से पहिला हस्व स्वर दीर्घ बोला जाता है किन्तु भाषा में ऐसा कहीं होता है और कहीं नहीं होता है ॥
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तथापि उसका प्रारंभ करने से पूर्व व्याकरण २- स्वयं राजन्त इति स्वराः ॥ ३- अन्वग्
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