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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
माणु दीखते क्यों नहीं हैं ? तो इस का उत्तर यह है कि-यदि अपनी आँखें अपनी सूंघने की इन्द्रिय के समान ही तीक्ष्ण होती तो सड़ते हुए प्राथो में से उड़ कर ऊँचे चढ़ते हुए और हवामें फैलते हुए संख्याबन्ध नाना जन्तु अपने को अवश्य दीख पड़ते, परन्तु अपने नेत्र वैसे तीक्ष्ण नहीं हैं, इस लिये वे अपने को नहीं दीखते हैं, हां ऐसी हवा में होकर जाते समय अपनी नाक के पास जो वास आती हुई मालूम पड़ती है वह और कुछ नहीं है किन्तु सड़े हुए प्राणी आ िमेंसे उड़ते हुए वे सूक्ष्म जन्तु अर्थात् छोटे २ जीव ही हैं, यह बात आ निक (वर्तमान ) डाक्टर लोग कहते हैं, तथा जैन पन्नवणा सूत्र में भी यही लिया है कि-दश स्थान ऐसे हैं जिन से दुर्गन्धयुक्त हवा निकलती है, जैसे-मुर्दे, वीर्य, खून, पित्त, खंखार, थूक, मोहरी तथा मल मूत्र आदि स्थानों में सम्मूर्छिम अंगुल के असंख्यातवें भाग के समान छोटे २ जीव होते हैं, जिन को चर्म नेत्रवाले नहीं देख सकते हैं किन्तु सर्वज्ञ ने केवल ज्ञान के द्वारा जिन को देखा था, ऐसे असंख्य जीव अन्तर्मुहूर्त के पीछे उत्पन्न होते हैं, ये ही जन्तु श्वास के मार्ग से अपने शरीर में प्रवेश करते हैं, इसी प्रकार घर में शाक तरकारी का छिलका तथा कूड़ा कर्कट आदि आंगन में अथवा घर के पास फक २ कर जमा कर दिया जाता तो वह भी हवा को विगाड़ता है, चमार, कसाई, रंगरेज तथा इसी प्रकार के दूसरे धन्धेवाले अन्यलोग भी अपने २ धन्धे से हवा को बिगाड़ते हैं, ऐसे स्थानों में हो कर निकलते समय नाक और मुँह आदि को बन्द कर के निकलना चाहिये ।। ४-मुर्दो के दाबने और जलाने से भी हवा बिगड़ती है, इस लिये मुद्दों के दाबने
और जलाने का स्थान वस्ती से दूर रहना चाहिये, इस के सिवाय पृथ्वी स्वयं मी वाफ अथवा सूक्ष्म परमाणुओं को बाहर निकालती है तथा उसमें थोड़ी बहुत हवा भी प्रविष्ट होती है, और यह हवा ऊपर की हवा के साथ मिल कर उसको बिगाड़ देती है, जब पृथ्वी दरारवाली होती है तब उस में से सड़े हुए पदार्थों के परमाणु विशेष निकलकर अत्यन्त हानि पहुंचाते हैं।
सड़ता हुआ या भीगा हुभा भाजी पाला बहुधा ज्वर के उपद्व का मुख्य कारण होता है। ५-घर की मलिनता से भी खराब हवा उत्पन्न होती है और मलिनता के स्थान
१-इस बात को प्राचीन जनों ने तो शास्त्रसम्मत होने से माना ही है-किन्तु अचीन विद्वान् डाक्टरों ने भी इस को प्रत्यक्ष प्रमाण रूपमें स्वीकार किया है ।। २-देखो ! विकसूत्र में-गौतम गणधर ने मृगा लोकी दुर्गन्धि के विषय में नाक और मुँह को मुखवत्रिका (जो हाथ में थी) से मृगारानी के कहने से इँका था, यह लिखा है ।। ३-इस बात का हम ने मारवाड़ देश में प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि-जब बहुत वृष्टि होकर ककड़ी मतीरे और टीइसे आदि की वेले आदि सडती हैं तब जाट आदि ग्रामीणों को शीतज्वर हो जाता है तथा जब ये चीजें शहर में आकर पड़ी २ सड़ती हैं तब हवा में जहर फैल कर शहरबालों को शीतज्वर आदि रोग हवा के बिगडने से हो जाते हैं।
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