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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
हैं और इस सिद्धान्त का यह स्पष्ट अनुभव भी होता है कि -ज्यों २ ऊपर को चढ़ते जावें त्यों २ हवा अधिक सूक्ष्म मालूम देती है, इस के सिवाय पदार्थविज्ञान के द्वारा यह तो सिद्ध हो ही चुका है कि हवा के स्थूल थर में आदमी टिक सकता है परन्तु सूक्ष्म ( पतले ) थर में नहीं टिक सकता है, इसी लिये बहुत ऊपर को चढ़ने में श्वास आने लगता है, नाक तथा मुख से रुधिर निकलना शुरू हो जाता है और मरण भी हो जाता है, यद्यपि पक्षी पतली हग में उड़ते हैं परन्तु वे भी अधिक ऊँचाई पर नहीं जा सकते हैं, फ्रेंच देश के गेल्युनाक और वीयोट नामक प्रसिद्ध विद्वान् सन् १८०४ ईस्वी में करीब चार मील ऊँचे चढ़े थे, उस स्थान में इतना शीत था कि- शीसी के भीतर की स्याही उसी में हँस कर जम गई तथा वहां की हवा भी इतनी पतली थी कि उन्हों ने वहां पर एक पक्षी को उड़ाया तो वह उड़ नहीं सका, किन्तु पत्थर की तरह नीचे गिर पड़ा, इसी प्रकार काफी हवा न होने के कारण मनुष्यों को भी पतली हवावाले ऊँचे प्रदेश में रहने से श्वास चलने लगता है और शरीर की नसें फूल कर फटने लगती हैं तथा नाक और मुँह से रक्त बहने लगता है, हिमालय और आल्पस पर्वतों पर चढ़नेवाले लोगों को यह अनुभव प्रायः हो चुका है और होता जाता है ।
स्वच्छ हवा के तत्त्व ।
सामान्य लोग मन में कदाचित् यह समझते होंगे कि - हवा एक ही पदार्थ की बनी हुई है परन्तु विद्वानों ने इस बात का अच्छे प्रकार से निश्चय कर लिया है कि - हवा में मुख्य चार पदार्थ हैं और वे बहुत ही चतुराई और आश्चर्य के साथ एकत्रित होकर मिले हुए हैं, वे चारों पदार्थ ये हैं- प्राणवायु ( ऑक्सिजन ), शुद्ध वायु ( नाइट्रोजन ), मिश्रित वायु ( कारबोनिक एसिड ग्यास ) और पानी के सूक्ष्म परमाणु, देखो! अपने आसपास में तीन प्रकार के पदार्थ सर्वदा स्थित होते हैं - अर्थात् कई तो पत्थर और काष्ट के समान कठिन हैं, कई पानी और दूधके समान पतले अर्थात् प्रवाही हैं, बाकी कई एक हवा के समान ही वायुरूप में दीखते हैं जो कि ( वायु ) जल के सूक्ष्म परमाणुओं से बना हुआ है, हवा में मिश्रित जो एक प्राणवायु ( ऑक्सिजन ) है वही मुख्यतया प्राणों का आधाररूप है, यदि यह प्राणवायु हवा में मिश्रित न होता तो दीपक भी कदापि जलता हुआ नहीं रह सकता, फिर यदि सब हवा प्राणवायुरूप ही होती तो भी जगन् में जीव किसी प्रकार से भी न तो जीते रह सकते और न चल फिर ही सकते किन्तु शीघ्र ही मर जाते, क्योंकि - जीवों को जितनी कठिन हवा की आवश्यकता है उस से अधिक वह हवा कठिन हो जाती, इसी लिये प्राणवायु के साथ दूसरी
१ - यह चावलों के कोयलों के साथ प्राणवायु के मिलने से बनता है | २ - इस को भिन्न करने से इस का माप भी हो सकता है ॥
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