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तृतीय अध्याय ।
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मनोहर पशु और पक्षियों के तथा उत्तम २ वृक्षों के सुन्दर और सुशोभित चित्रों आदि से अपने सोने तथा बैठने के कमरे को मन की प्रसन्नता के लिये सुशोभित रक्ख, सुन्दर और मनोरञ्जन ( मन को खुश करनेवाले ) गीत गाकर और सुन कर मन को सदा आनन्द में रक्खे, जिस से अनायास ( अचानक ) ही मन में उद्वेग अथवा अधिक हर्ष और शोक उत्पन्न हो जाये ऐसा कोई पदार्थ न देखे, न ऐसी बात सुने और न ऐसे किसी कार्य को करे किसी बात पर पश्चात्ताप ( पछतावा ) न कर तथा पश्चात्ताप को पैदा करने वाले आचरण ( वतव, व्यवहार) को यथाशक्य (जहांतक होसके ) न करे, मलीन न रहे, विवाद (झगड़े ) का त्याग करे, दुर्गन्ध से दूर रहे, लूले, लंगड़े, काने, कुबडे, बहिरे और गूंगे आदि न्यूनांग का तथा रोगी आदि का स्पर्श न करे और उन को अच्छी तरह से चित लगाकर देखे, घर में निर्द्वन्ह ( कलह आदि से रहित वा एकान्त ) स्थान में रहे, विशेष द्वंद्ववाले स्थान में न रहे, श्मशान का आश्रय; क्रोध; ऊंचा चढ़ना; गाड़ी घोड़ा आदि वाहन (सवारी ) पर बैठना ऊंचे स्वर से बोलना; वेगसे चलना; दौड़ना; कूदना; दिन में सोना; मैथुन; जल में डुबकी मारना ( गोता लगाना ); शून्य घर में तथा वृक्ष के नीचे बैठना; क्लेश करना; अंग मरोड़ना; लोहू निकालना; नख से पृथिवी को करोदना अथवा लकीरें करना; अमंगल और अपशब्द ( बुरे वचन ) बोलना; बहुत हँसना; खुले केश रहना, वैर, विरोध, द्वेष, छल, कपट, चोरी, जुआ, मिथ्यावाद, हिंसा और वैमनस्य, इन सब बातों का त्याग करे- क्योंकि ये सब बातें गर्भिणी स्त्री और गर्भ को हानि पहुंचाती हैं ।
स्मरण रहना चाहिये कि अच्छे या बुरे सन्तान का होना केवल गर्भिणी स्त्री के व्यवहार पर ही निर्भर है इस लिये गर्भवती स्त्री को निरन्तर नियमानुसार ही वर्ताव करना चाहिये, जो कि उस के लिये तथा उस के सन्तान के लिये श्रेयस्कर ( कल्याणकारी ) है ।
यह तृतीय अध्यायका - गर्भाधान नामक तीसरा प्रकरण समाप्त हुआ |
१- क्योंकि बहुत से चेपी रोग होते हैं (जिनका वर्णन आगे करेंगे ) अतः गर्भवती को किसी रोगी का भी स्पर्श नहीं करना चाहिये, तथा रोगी और काने लूले आदि न्यूनांग को ध्यान पूर्वक रखना भी नहीं चाहिये क्यों कि इस का प्रभाव वालक पर बुरा पड़ता हैं ॥ २-मैथुन करनेमें गर्भस्थ बालक के निकल पड़ने का सम्भव होता है - इस के सिवाय मैथुन गर्भाधान के लिये कया जाता है, जब कि गर्भ स्थित ही है तब मैथुन करने की क्या आवश्यकता हैं | ३- इनमें से बहुत सी बातों की हानि तो पूर्व कह चुके हैं, शेष वातों के करने से उत्पन्न होनेवाली हानियों को बुद्धिमान् स्वयं विचार लें अथवा ग्रन्थान्तरों में देख लें |
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