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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
दुःख सहने पड़ते हैं तब यह पद प्राप्त होकर जीवन की सफलता प्राप्त होती है और जीवन का सफल करना ही परम धर्म है, इसी तत्त्व को विचार कर प्राचीन काल की स्त्रियां तन मन और कर्म से उस में तत्पर रहती थीं किन्तु आज कल की स्त्रियों के समान केवल इन्द्रियों के तृप्त करने में ही वे अपने जीवन को व्यर्थ नहीं खोती थीं।
देखो ! जन्ममरण के बंधन से छूट जाना यही पुरुष तथा स्त्री का मुख्य कर्तव्य है, उस ( कर्तव्य ) को पूर्ण न करके इन्द्रियों के सुख में ही अपने जन्न at गँवा देना, यह बड़े अफसोस की बात है, इस लिये हे प्यारी बहनो ! तुम अपने स्त्रीधर्म को समझो, समझ कर उस का पालन करो और सतीत्व प्राप्त करके अपने जीवन को सार्थक ( सफल ) करो, यही तुम्हारा कर्तव्य तथा परम धर्म है और इसी से तुम्हें इस लोक तथा पर लोक का सुख प्राप्त होगा ।
पतिव्रताका प्रताप ।
पतिव्रता स्त्री अमुक देश, अमुक ज्ञाति अथवा अमुक कुटुम्ब में ही होती । है. यह कोई नियम नहीं है, किन्तु यह ( पतिव्रता स्त्री ) तो प्रत्येक देश, प्रत्येक ज्ञाति और प्रत्येक कुटुम्ब में भी उत्पन्न हो सकती है, पतिव्रता स्त्रियों के उत्पन्न होने से वह देश, वह ज्ञाति और वह कुटुम्ब ( चाहें वह छोटा तथा कैसी ही दुर्दशा में भी क्यों न हो तथापि ) वन्द्य होकर उत्तमता को प्राप्त होता है, क्योंकि यह सृष्टि का नियम है कि पतिव्रता स्त्रियों से देश ज्ञाति और कुल शोभा को प्राप्त होकर इस संसार में सब सद्गुणों का आधाररूप हो जाता है, पतिव्रता स्त्री से घर का सब व्यवहार प्रदीप्त होता है, उस की सन्तान धार्मिक, नीतिमान्, शुद्ध अन्तःकरण वाली, शौर्ययुक्त, पराक्रमी, धीर, वीर, तेजस्वी, विद्वान् तथा सद्गुणों से युक्त होती है, क्योंकि सद्गुणों से युक्त माता के उन सद्गुणों की छाप बालकों के कोमल अन्तःकरण में ऐसी दृढ़ हो जाती है कि वह जीवनपर्यन्त भी कभी नहीं जाती है, परिश्रम से थका हुआ पुरुष अपनी पतिव्रता स्त्री
के
सुन्दर स्वभाव से ही आनन्द पाकर विश्रान्ति पाता है, यदि पुत्र और द्रव्य आदि अनेक प्रकार की समृद्धि भी हो परन्तु घर में सद्गुणों से युक्त और सुन्दर स्वभाववाली पतिव्रता स्त्री न हो तो वह सब समृद्धि व्यर्थरूप है, क्योंकि ऐसी दशा में पुरुष को संसार का सुख पूर्ण रीति से कदापि नहीं प्राप्त हो सकता हैकिन्तु उस पुरुष को अपना धन्य भाग्य समझना चाहिये जिस को सुन्दर गुणों से युक्त सुशीला स्त्री प्राप्त होती है।
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स्त्री का पतिव्रत धर्म ही परम दैवत, रूप, तेज है, इसी अलौकिक शक्ति से उस को अखण्ड और है तथा इसी शक्ति के प्रभावसे सती स्त्री के सामने सर्व नाश होजाता है ।
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और अलौकिक शक्ति होती
अनन्त सुख कुदृष्टि करने
प्राप्त हो सकता वाले पुरुष का
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