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मांसभक्षण का विधान कैसे हुआ ? शायद वे ऐसा कहें कि बहु पट्टियं बहु कंटयं के प्रत्याख्यान से सिद्ध होता है कि बिना हड्डी और बिना कंटक का अथवा थोड़ो हड्डी और थोड़े कंटक वाला मांस कल्पता था तो यह भी उनका भ्रम नहीं किन्तु महा भ्रम है कि अगर किसी सद् गुरु के पास थोड़ा बहुत मोमांसा शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया हो ता मालूम होगा कि वाक्य कितने प्रकार के होते हैं, और उनका अर्थ किस प्रकार किया जाता है ? पिता अपने पुत्र के प्रति उपदेश कर रहा है कि "सत्यं चर मिथ्यां मा वद" अर्थात् सदैव सत्य बोलो, झूठ कभी भी मत बोलो तो इस परसे कोई भी सहृदय और साक्षर विद्वान यह अर्थ नहीं निकाल सकता कि लड़का झूठ बोलता रहा होगा, तब तो पिता ने यह उपदेश दिया कि "सत्यं चर, मिध्यां मा वद" अगर ऐसा अर्थ करता है सो विधि नियम अर्थ - वादादि वाक्य भेद ज्ञानों से शून्य वह व्यक्ति माना जायेगा । अतः श्री दशवैकालिकजी को उपर लिखित गाथाओं से तो “द्विषन्नपि दुर्जनेनोपकृतमेव" अर्थात् आरोप करते हुए भी कोशाम्बोजी ने जैन समाज को अमांसाहारी ही सिद्ध किया ।
अब जैन सम्प्रदाय के अनुसार और अवचूरिकार के मत से गाथा का शुद्ध अर्थ - बहु अट्ठियं ( बहु अस्थिकम् ) बहु बीजक मिति यावत् पोग्गलं ( पुद्गलम् ) पुद्गलाख्यद्रुमफलम्, श्रणिमि
वा (अनिमिषं वा ) अनिमिषाख्य द्रुमफलं वा, बहु कंटयं (बहु कटकम् ) अतिथ्यं ( अस्तिकम्) अस्तिक द्रुमफलम्, हिंदुयं (बिंदुकम् ) टिम्बरकीफलम् उच्छुखंडं ( इक्षुखण्डम् ) सिबलिं शाल्मली वल्ल्यादिफलिकां वा दितियं पडियाइक्खे इति संबंध: । अर्थात् बहुत बीज वाले पुद्गल नामक वृक्ष का फल और बहुत कांटे वाला अनिमिष नामक वृक्ष का फल, अथवा अनिमिष नाम वाले बहु कण्टक वृक्ष का फल, तथा अस्तिक तिन्दुक, बिल्व इदुखण्ड और
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