________________
.
..
.
प्रायः लोगों को मालूम होने से, अब हम यह बात सिद्ध कर दिख. लानी चाहते हैं कि यह पन्थ बेगुरा संमूर्छिमवत् है, अन्यान्य विद्वानों के प्रमाण तो कदाचित् हमारे ढूंढक पंथियों को न भी रुचें परन्तु देखो, इसी पन्थ की मानीती पार्वती स्वरचित मानदीपिका पोथी के पृष्ठ १२-१३ में लिखती है कि :__" इस रीती से पूर्वक यतिलोकों की क्रिया हीन हो रही थी मोई पूर्वक यतियों की लबजी नाम यति ने क्रिया हीन देख कर अनुमान १७२० के साल में अपने गुरु को कहने लगे कि तुम शास्त्रों के अनुसार आचार क्यों नहीं पालते तब गुरु जी बोले कि पंचमकाल में शास्त्रोक्त संर्पूण क्रिया नहीं हो सक्ती तव लवजी बोले कि तुम भ्रष्टाचारी हो मैं तुम्हारे पास नहीं रहुंगा मैं तो शास्त्रों के अनुसार क्रिया करूंगा जब उसने मुख वस्त्रिका मुख पर लगाई।
ऋषिराज इंडिया साधु विराचिन सत्यार्थसागर में लिखा है कि संवत् १७०९ में लवजी शाह-तिवारे ऋषि लवजी गच्छ बोसरावी (त्याग के) निकला तेहने साथे ऋषि थोभण जी ? ऋषि संखयोनी २ इन दोनों ने दीक्षा लीनी,लोकों ने इंडिया नामदिया"
..बस पाठकवृन्द ढूंढियोंके ही घरके पूर्वोक्त दोनों प्रमाणोंसे स्वयं तात्पर्य निकाल लेवें कि सतारवें सैकेमें लवजी ने मुख पर पट्टी लगाई परन्तु यह कहीं नहीं लिखा कि अमुक के पास जाकर पुनः दीक्षा ली। जब लवनी के गुरु भ्रष्टाचारी हुए और उनको छोड दिया तो चाहिये था कि कोई सदाचारी गुरु धारण किया होता,सो तो कियाही नहीं, अतःसिद्ध हुआ कि यह ढूंढकपन्थ बेगुरा है-हां यदि अब भी पार्वती वा अन्य किसी दूंढकपन्थी को मालूम हो तो बता देवे ।।
जिस पार्वती ढूंढनी का पूर्वोक्त वर्णन आया है जो आज कलमान की मारी फूली नहीं समाती, जो अपने नाम के साथ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com