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( ७५ ) आज्ञा से विहार करनेवाले श्रीगौतमस्वामी तथा प्रयास भीयोमुनि जी आदि अन्य क्षेत्रों में रहनेवाले मुनियों पर उ शाला प्राक्षेप हर्षमुनिजी ने अपनी प्रशंसा पूर्वक अनुचित छपवायें हैं, इसीलिये उचित उत्तर लिखने में आये हैं । क्योंकि यदि हर्षमुनिजी को अपनी प्रशंसा की बहुत चाहना थी तो दूसरे की अनुचित निंदा त्यागकर अपनी प्रशंसा ही छपवा देते, परंतु दूसरों की निंदा छपवाना युक्त नहीं था । जैसे कि सूरतनगर में श्रीमोहनलालजी महाराज का प्रवेश दिन की पिछली रात्रि में सूरतनिवासी श्राविका और श्रावकों के ब्रह्मचर्य व्रत का वर्णन पृष्ठ २५० से २५४ तक हर्षमुनिजी ने छपवाया है कि
कपोलभित्तो स्वच्छायां, प्रियायाः पद्मपत्रिकां । केषांचिल्लिखितां याता, दोषा दोषविवर्जिता ॥
अर्थ-केटला एक पतियोने पोतानी प्रियाना स्वच्छगाल ऊपर पद्मपत्रिका ( केशरथी मिश्र थयेला चंदनवड़े कमलफूलनी पांखड़ी चितरवीते ) चितरसां चितरतां निर्दोष रात्री बीती गई अर्थात् तेत्रो चितरता रह्या अने रात्री वीती गई एटले तेमने अनायासे ब्रह्मचर्यव्रत थयूं।
केषां कपोतभ्रातृणां, संगमार्थमुपेयुषां । बहुधा यतमानानामपि सा तु विभावरी॥ कुमारतारालंकारसंभारोद्विग्नमानस्सैः। . चंचलैःसमयाभावात् स्त्रीजनैर्विफलीकृता।
अर्थ-केटला एक कपोत पत्नीनी पेठे विषयनी लालस लामो समागमने माटे पोत पोतानी स्त्रीत्री पासे गया अने घण।
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