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अर्थ - जो लोग एक दूसरे के पक्षपात राग से अन्ध नहीं हैं वे लोग गच्छ दुराग्रह रहित और सत्पक्षपात सहित सत्पुरुषों को मान्य उसीको मानते हैं, पं० रमापति जी ! आपकी रचना से सिद्ध होता है कि हर्षमुनि जी महाराज ने उपर्युक्त श्लोक द्वारा मध्यस्थ भाव से जो अपनी मंतव्यता उपदेश द्वारा सज्जनों को बतलाई है सो तो उचित है परन्तु हर्षमुनि जी का यह उपदेश दीपक की तरह पर प्रकाश मात्र है याने दीपक पर को प्रकाश करता है किंतु उसके नीचे अँधेरा रहता है, इसी तरह देखिये यदि महात्मा हर्षमुनि जी की तपगच्छीय भक्तों में पक्षपात पूर्वक रागान्धता नहीं होती और तपगच्छ संबंधी दुराग्रह न होता तो सत्पक्षपात सहित अपने महान् पूर्वाचार्यों को पूज्य मान कर उनकी ५० दिने पर्युषण आदि शुद्ध समाचारी कराने के लिये गुरुवर्य श्री मोहनलाल जी महाराज ने हर्षमुनि जी आदि शिष्य प्रशिष्यों को जो आज्ञा दी थी उसको सहर्ष स्वीकार करते तभी उनकी गच्छनिराग्रहता तथा सत्पक्षपातसहितता और रागांध रहितता सिद्ध होती अन्यथा नहीं ।
[प्रश्न ] श्रीमोहनलाल जी महाराज का स्वर्गवास होने के अनंतर हर्षमुनि जी ने उत्तरार्द्ध श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ४१६ तथा ४२० में छपवाया है कि
श्रथैवमुपदेशानंतरमुपस्थितांस्तान्सर्वानेवापृच्छत् कस्को कां कां समाचारीं संप्रतिकरोतीति — अथातः पन्यास श्रीयशोमुनि कमलमुनिभ्यां शिष्याभ्यां क्षेत्रोपरोधात्संप्रति खरतरगच्छीयां समाचारों कुर्व इतिव्याज ॥
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