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(४६) शेष १२ मासों को जोड़ दिया तो दोनों मिलकर १३ मास हुए । इसी तरह एक अधिकमास के २ पातिक प्रतिक्रमण में एक एक पत्न बोलते हैं तो उनके २ पन हुए और दूसरे १२ मासों के २४ पन हुए । इसलिये चौवीस पत्त और दो पन कुल २६ पन्न हुए । एवं अधिकमास के २ पन्नों का पन्द्रह पन्द्रह रात्रि दिन आपने उच्चारण किया है तो ३० रात्रिदिन हुए और शेष १२ मासों के ३६० रात्रिदिन, कुल ३६० रात्रिदिन हुए तो फिर अभिवर्द्धित वर्ष के सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में आप लोग १३ मास २६ पक्ष ३६० रात्रिदिन क्यों नहीं बोलते हैं ?
और भी सुनिये, श्रावणादि मासों की वृद्धि होती है तो आप लोगों ने आषाढ़ सुदी १४ से कार्तिक सुदी १४ पर्यंत १० पातिक प्रतिक्रमण किये, उसमें भी एक एक पत्त पन्द्रह पन्द्रह रात्रिदिन का अभ्युठिया आपने खमाया, उस हिसाब से भी आपके मुख से ५ मास १० पक्ष १५० रात्रिदिन का उच्चारण हो चुका, तो फिर कार्तिक सुदी १४ के प्रतिक्रमण में ४ मास ८ पक्ष १२० रात्रिदिन जो बोलते हैं, वह असत्य हैं । यह प्रत्यन महामिथ्या भाषण किस कारण से करते हो ?
आपके उक्त उपाध्यायों ने अधिकमास होने पर भी अभिवर्द्धित वर्ष के १२ मास २४ पक्ष इत्यादि बोलने इसी तरह अधिकमास होने पर भी ४ मास ८ पन इत्यादि बोलने लिखे हैं सो तो उपर्युक्त श्रीतीर्थकर गणधर टीकाकार प्रणीत श्रीचंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र टीकापाठ से प्रत्यक्ष विरुद्ध असत्य कथन है । उसको कौन बुद्धिमान् सत्य मानेगा ? और जैनटिप्पने में तो तिथि घटती है बढ़ती नहीं, वास्ते १५ या १४ दिनरात्रि का पक्ष होता है। किंतु लौकिक टिप्पने में १३-१४-१५-१६ यह कमती वेसी दिन
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