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आपके उपाध्यायजी ने अभिवर्द्धित वर्ष में ८० दिने भाद्रपद सुदी ४ को वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास की सुदी ४ को ८० दिने पर्युषण करने के लिये लिखा है, परंतु इससे आपके उक्त मंतव्य की सिद्धि कदापि नहीं हो सकती है । क्योंकि मासवृद्धि नहीं होने से चंद्रवर्ष में श्रीकालकाचार्य महाराज ने शालवाहन राजा को ५० वें दिन भाद्रपद सुदी ५ को पर्युषण अवश्य करना कहा, सो कारण योगे उक्त राजा के कहने से ४६ वें दिन चौथ को पर्युषण किया क्योंकि ५० दिन के भीतर पर्युषण करने कल्पते हैं, ऐसी आज्ञा है किंतु ५० वें दिन पर्युषण किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघनी कल्पती नहीं है, यह उक्त शास्त्रपाठों की आज्ञा है । उस आज्ञा को भंग करके ८० दिने पर्युषण करना सर्वथा अनुचित है । आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि
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न तु क्वाऽप्याऽऽगमे भदवय सुद्ध पंचमीए पज्जोसविजइत्तिपाठवत् अभिवयि वरिसे सावण सुद्ध पंचमी पज्जोसविज्जइत्तिपाठ उपलभ्यते ।
अर्थात् चंद्रवर्ष में २० दिनसहित १ मास याने ५० वें दिन भाद्रपद सुदी ५ को पर्युषण करना, इस पाठ की तरह अभिवर्द्धित वर्ष में २० वें दिन श्रावण सुदी ५ को पर्युषण करना ऐसा पाठ कोई भी आगम में लिखा हुआ नहीं मिलता । इस मिथ्या लेख से आपके मंतव्य की सिद्धि नहीं हो सकती है क्योंकि अभिवर्द्धित वर्ष में ८० दिने भाद्र सुदी ५ को वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास की सुदी ५ को ८० दिने पर्युषण करना आगम में लिखा नहीं है तो आागमविरुद्ध आपके उक्त उपाध्याय
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