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भूमिका ।
प्रिय वाचकवृन्द ! शांतमूर्ति, महातपस्वी श्रीमजिन यशः सूरिजी महाराज का जन्म संवत् १६१२ में जोधपुर नगर में हुआ था । आपका गृहस्थपने का नाम जेठमल था । आपका बाल्यावस्था से ही पूजा प्रतिक्रमण ज्ञानाभ्यास द्वारा श्रीजिनधर्म में बहुत उद्यम था और आपने अढाई, पन्द्रह, पैंतीस, इक्कावन उपास इत्यादि उग्र तपस्यायें गृहस्थावस्था में की थीं। पूज्यपाद, धर्मधुरंधर, परोपकारतत्पर, शासनरक्षक, सदुपदेशदाता, प्रातःस्मरणीय, सुसंयमी, बहुप्रसिद्ध महात्मा श्रीमन्मोहनलालजी महाराज के पास आपने अपनी २८ वर्ष की युवावस्था में, निज जन्मभूमि जोधपुर में सं० १६४० में, बड़े धूमधाम से दीक्षा ग्रहण की। तब से आपका नाम श्रीमद्यशोमुनिजी हुआ । दीक्षाग्रहण के अनंतर भी आपने अट्ठाई, पन्द्रह, मासक्षमणादि अनेक तपस्यायें, साधु अवस्था में कीं और अंग उपांग सूत्रादि श्रीजैनागम का सम्यक् प्रकार योगोद्वहन भी किया । अतएव अमदावाद नगर में श्रीदयाविमलजी महाराज प्रमुख श्रीसंघ ने आपको “पन्यास श्रीयशोमुनिजी गणि" की पदवी प्रदान की और मकसूदाबाद निवासी श्रीसंघ ने "श्रीम जिनयशः सूरिजी महाराज" यह आचार्य पद का नाम दिया । श्रीपावापुरी में जोकि श्रीमहावीर तीर्थंकर के निर्वाण -प्राप्ति के कारण अति पवित्र तीर्थभूमि है वहाँ ५३ उपवास की तपस्या पूर्वक श्रीवीरप्रभु का स्मरण करते हुए उन्हीं के ध्यान में सं० १६७० में काल करके आप देवलोक को प्राप्त हुए ।
यह हर्षहृदयदर्पण ग्रंथ मकसूदाबाद में आपकी ही आज्ञा के अनुसार लिखा गया था । इसमें श्रीहर्षमुनिजी के अनुचित लेखों के उचित उत्तर के साथ श्रीपर्युषणादि समाचारी की मीमांसा शास्त्रपाठों से दिखलाई गई है । इस ग्रंथ को मुद्रित कराके आप सज्जनवृन्दों की सेवा में समर्पण करता हूँ । इसके पाठ से सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करने में आप लोगों को सहायता मिलेगी, ऐसी आशा है । इत्यलं विद्वत्सु बुद्धिसागर मुनिः ।
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