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( २८ ) और पीछे के प्राचार्य उपाध्यायों का लेख सूत्र नियुक्ति टीका चूर्गि आदि इस ग्रंथ में लिखे हुए सिद्धांतों के पाठों से जो विरुद्ध होगा सो प्रमाण नहीं किया जायगा जैसा कि तुमारे गच्छ के उपाध्याय श्रीधर्म-सागरजी जयविजयजी विनयविजयजी ने अभिवर्द्धित वर्ष में विवादरूप ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास की सुदी ४ को ८० दिने सांवत्सरिकप्रतिक्रमण, केशलुंचन इत्यादि सांवत्सरिक कृत्य स्थापन करने के लिये जैनसिद्धान्त टिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्य युक्त पर्युषणा को गृहिज्ञातमात्रा लिखी हैं सो सिद्धांत विरुद्ध हैं
- देखिये श्रीजिनदासमहत्तराचार्य महाराज ने श्रीनिशीथचूर्णि में ऐसा लिखा है कि
अभिवढिय वरिसे २० वीसतिराते गते गिहिणातं करेंति तिसु चंदवरिसेसु २० सवीसतिराते मासे गते गिहिणातं करेंत जत्थ अधिमासगो पड़ति वरिसे तं अभिवढियवरिसं भण्णति जत्थ ण पड़ति तं चंदवरिसं सोय अधिमासगो जुगस्सगंते मज्जेवा भवति जइ अंते नियमा दो आसाढ़ा भवन्ति अह मज्जे दो पोसा सिसो पुच्छति कम्हा अभिवढ्ढिय वरिसे वीसतिरातं चंदवरिसे सवीसतिमासो उच्यते जम्हा अभिवढिय वरिसे गिम्हे चेव लोमासो अतिकतो तम्हा वीसदिना अणभिग्गहियं
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