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(२६) सो भाषाढ़ पूर्णिमा को करे । यदि रहने योग्य क्षेत्र का प्रभाव हो तो आगे पाँच पाँच दिनों के पर्व की वृद्धि से दश पर्व तिथियों में करे । इस तरह चंद्रसंवत्सर में ५० दिने भाद्रपद सुदी ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्यविशिष्ट पयुर्षण करे और दूसरी गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्य विशिष्ट पर्युषण जैनटिप्पने के अनुसार अभिवति वर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५ को करे । उस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक कृत्य यह करने के हैं कि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण १, केशलुंचन २, अष्टमतप ३, चैत्यपरिपाटी ४, संघ को परस्पर तामणा ५। इन सांवत्सरिक कृत्यों से युक्त श्रीपर्युषण पर्व जैनटिप्पने के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार • अभिवर्द्धित वर्ष में ५० दिने करना संगत है ।
देखिये तपगच्छ के उपाध्यायजी श्रीधर्मसागरजी जयविजयजी विनयविजयजी इन तीनों ने अपनी रची हुई कल्पसूत्र की टीकाओं में लिखा है कि
एतत्कृत्यविशिष्टा भाद्रपदसितपंचम्यां कालकाचार्यादेशाच्चतुर्थ्यामपि जनप्रकटा कार्या द्वितीया तु अभिवर्धितवर्षे चातुर्मासिकदिनादारभ्य विंशत्या दिनैः वयमत्र स्थितास्म इति पृच्छता गृहस्थानां पुरोवदंति सा तु गृहिज्ञातमात्रैव तदपि जैनटिप्पनकानुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगान्ते चाषाढ़ एव वर्दते नान्ये मासास्तट्टिप्पनकं चाधुना सम्यग् न ज्ञायतेऽतः पंचाशतव दिनैः पर्युषणा संगतेति वृद्धाः ।
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