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( २२ ) टिप्पनानुसारेण तत्रहि युगमध्ये पौषो युगान्ते चाषाढ़ एव वर्द्धते नान्ये मासास्तानि च टिप्पनानि अधुना न सम्यग् ज्ञायन्तेऽतो दिनपंचाशतैव पर्युषणा संगतेति वृद्धाः ।
भावार्थ-यह गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषणा चंद्रसंवत्सर में ५० दिने भाद्र शुक्ल ५ मी को पूर्वकाल में की जाती थी सो श्रीकालकाचार्य महाराज की आज्ञा से ४६ दिने चौथ अपर्वतिथि में भी लोक-प्रसिद्ध की जाती हैं और जो अभिवर्द्धित वर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा से २० दिन बीतने से श्रावण शुक्ल ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषण पर्व करने की शास्त्र की आज्ञा हैं सो जैन-सिद्धांत टिप्पने के अनुसार हैं क्योंकि जैन टिप्पने में पाँच वर्ष का एक युग के मध्यभाग में निश्चय पौष मास बढ़ता है और युग के अंत में आपढ़ मास ही बढ़ता है अन्य श्रावणादि मास नहीं बढ़ते । उन जैन टिप्पनों का इस समय में सम्यग् ज्ञान नहीं है याने जैन टिप्पने के अनुसार वर्षा चतुर्मासी के बहार पौष और आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी वास्ते २० दिने श्रावण सुदी ४ को पर्युषण करते थे उस जैन टिप्पने का ज्ञान के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार वर्षा चतुर्मासी के अंदर श्रावण आदि मासों की वृद्धि होती है इसीलिये दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा प्रथम भाद्र सुदी ४ को ५० दिने पर्युषण करने निश्चय संगत ( संमत ) है । इस प्रकार श्रीद्ध प्राचीन आचार्यों का कथन है, इसको श्रीवल्लभविजयजी महात्मा अपने उक्त लेख में लिखी हुई प्रतिज्ञा के अनुकूल मानना स्वीकार करें और अभिवर्द्धित वर्ष में ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास की सुदी ४ को ८० दिने सिद्धांत-विरुद्ध पर्युषण
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