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( २० ) चंद्रवर्ष में मास वृद्धि नहीं होने के कारण से केवल चंद्रवर्ष संबंधी पर्युषण का पाठ श्री समवायांग सूत्र में यथा
समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराइ मासे वइकंते सत्तरिएहिं राइंदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ ।
भावार्थ-चंद्रवर्ष में मास वृद्धि नहीं होने के कारण से ७० रात्रिदिन शेष रहते और वर्षाकाल के २० रात्रि सहित १ मास वीतने पर याने ५० वें दिन की भाद्र सुदी ५ को स्थान के अभाव से वृक्षमूलादि के नीचे भी श्रमण भगवान् श्रीमहावीर प्रभु वर्षावास के पर्युषण ५० दिने अवश्य करते हैं ( यह गणधर महाराज का अभिप्राय टीका में साफ लिखा है )
और ( अभिवद्वियवरिसे गिर्दे चेव सो मासो अतिकंतो तह्मा वीस दिना) इत्यादि श्रीनिशीथचूर्णि के पाठ से जैनटिप्पने के अनुसार अभिवद्धितवर्ष में ग्रीष्म ऋतु में निश्चय वह अधिक एक मास अतिक्रांत हो गया वास्ते १०० दिन शेष रहते अभिवर्द्धितवर्ष में आषाढ पूर्णिमा से २० दिने श्रावण सुदी ५ को पर्युषण करें।
लीजिये तीसरा प्रमाण आपही के श्रीतपगच्छाधिपति धुरंधर आचार्य श्रीमान् क्षेमकीर्तिसूरिजी महाराज विरचित श्रीबृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति के उक्त पाठ की टीका संबंधी पाठ यथा
अभिवतिवर्षे विंशतिराने गते इतरेषु च त्रिषु चन्द्रसम्वत्सरेषु सविंशतिरात्रे मासे गते गृहिज्ञातं कुर्वन्ति ।
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